नेपाल के नए संविधान की वजह से भारत और नेपाल के सालों पुराने रिश्ते पर दोधारी तलवार लटक गई है. नए संविधान में मधेशी ही नहीं बल्कि भारत की भी अनदेखी की गई है. ऐसा कर के नेपाल ने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है और भारत की सुरक्षा के लिए भी संकट खड़ा कर दिया है. नेपाली माओवादी पार्टियों की चीन से नजदीकियां बढ़ाने और भारत को तवज्जुह नहीं देने की सोचीसमझी साजिश है. मधेशी आंदोलन की वजह से भारत से जरूरी चीजों का आना बंद होने के बाद नेपाल ने चीन के सामने हाथ फैलाने में जरा भी देरी नहीं लगाई. नेपाल ने चीन से मांग की है कि वह नेपाल से लगी सीमा को खोल दे, ताकि वह जरूरत की चीजों को खरीद सके. नेपाल की इस मांग पर चीन की बाछें खिल गईं लेकिन भारत के लिए राहत की बात यह है कि पिछले दिनों नेपाल में आए भयंकर भूकंप से नेपाल और चीन के बीच बनी 27 किलोमीटर लंबी सड़क पूरी तरह बरबाद हो गई, जिस से चीन को अपना ‘खेल’ खेलने का मौका नहीं मिल सका.

नया संविधान लागू होने के बाद 11 अक्तूबर को सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष खड्ग प्रसाद शर्मा ओली नेपाल के नए प्रधानमंत्री चुन लिए गए. नेपाल के 38वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद ओली ने कहा कि वे नेपाल को हर तरह के संकट से उबारने की कोशिश करेंगे और नए संविधान को बेहतर तरीके से लागू करेंगे. ओली ने नेपाली कांगे्रस के अध्यक्ष सुशील कोइराला को हराया. इस के पहले संविधान सभा के निर्वाचन द्वारा प्रधानमंत्री की कुरसी पर बिठाए गए कोइराला ने 10 अक्तूबर को इस्तीफा दे कर दोबारा अपनी दावेदारी पेश की थी. स्पीकर सुभाष नेम्बांग ने प्रधानमंत्री चुनने के लिए चुनाव कराया, जिस में ओली को 388 वोट मिले और कोइराला को 249 वोट ही हासिल हुए. संविधान सभा के 597 सदस्यों में से 587 ने मतदान में हिस्सा लिया. बहुमत के लिए 299 वोटों की जरूरत थी. नेपाल में ओली की बातों को ‘ओली की गोली’ कहा जाता है. उन की छवि आक्रमक नेता की रही है और भारत विरोध की आग को वे अकसर हवा देते रहे हैं. फरवरी 1970 में कम्युनिस्ट पार्टी औफ नेपाल में शामिल होने वाले ओली माओवादी आंदोलन के दौरान 1973 से 1987 तक जेल में रहे. 4 फरवरी, 2014 को वे सीपीएन-यूएमएल के मुखिया बने. साल 1990 में लोकतंत्र बहाली के बाद 1994-95 में नेपाल के गृहमंत्री बने थे.

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