पिछले 2-3 महीनों से श्रीमतीजी को न जाने व्हाट्सऐप का क्या शौक लगा है कि रातरात भर बैठ कर मैसेज भेजती रहती हैं. कभी अचानक नींद खुले तो देख कर डर जाएं कि वे हंस रही हैं. उस रात भी हम देख कर घबरा कर पूछ बैठे, ‘‘क्यों क्या बात है?’’

‘‘एक जोक आया है, गु्रप में शामिल हूं न तो फोटो और मैसेज आते रहते हैं. सुनाऊं?’’ श्रीमतीजी ने रात को 2 बजे उत्साहित स्वर में पूछा.

हम ने ठंडे स्वर में कहा, ‘‘सुना दो.’’

वे सुनाने लगीं. जब खत्म हो गया तो हम ने उत्साह बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बहुत बढि़या है.’’

‘‘एक प्रेरक कथा भी आई है. उसे भी सुनाऊं?’’ और फिर हमारी मरजी जाने बिना शुरू हो गईं. अचानक हमारी नींद खुली. श्रीमतीजी हमें झकझोर रही थीं. हम घबरा गए. पूछा, ‘‘क्यों क्या हुआ?’’

‘‘कहानी कैसी लगी?’’

‘‘कौन सी?’’

‘‘जो मैं सुना रही थी.’’

‘‘सौरी डियर हमें नींद आ गई थी.’’

‘‘मैं कब से पढ़पढ़ कर सुना रही थी,’’ कुछ नाराजगी भरे स्वर में श्रीमतीजी ने कहा.

‘‘डियर रात के 2 बजे इनसान सोएगा नहीं तो सुबह काम कैसे करेगा?’’ हम ने अपनी आंखें मलते हुए कहा.

‘‘तुम्हें अपनी श्रीमतीजी के द्वारा सुनाई जा रही कहानी की बिलकुल चिंता नहीं है,’’ वे कैकेई की तरह क्रोध धारण कर के बोलीं.

‘‘अच्छा, सुना दो,’’ कह कर हम उठ बैठे और वे बिना सिरपैर की कथा का मोबाइल पर देखदेख कर वाचन करने लगीं. 3 बजे तक हम जागे और सुबह कार्यालय लेट पहुंचे. हमें यह देख कर आश्चर्य हो रहा था कि जो श्रीमतीजी 2 माह पहले तक हम से बातचीत करती थीं. हमारे कार्यालय से लौट आने पर नाश्ते की, चाय की बातें करती थीं वे अचानक इतनी कैसे बदल गईं? हमेशा वे अपने मोबाइल पर बैठ कर न जाने किसकिस को मैसेज करती रहती थीं. नैट और मोबाइल का जो भी चार्ज लगता वह हमारी जेब से जा रहा था. अब तो नाश्ता भी हमें खुद निकालना पड़ता था. भोजन में वह पहले जैसा स्वाद नहीं रहा था. लगता था खानापूर्ति के लिए भोजन पका दिया गया है. हम अपना माथा ठोंकने के अलावा और कर ही क्या सकते थे?

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