रामायण में कई कांड हैं. अगर देखा जाए तो रामायण में कांड के अलावा कुछ भी नहीं है. उन कांडों में एक कांड सुंदरकांड है. इस का आयोजन मेरे महल्ले के अवधेश ने किया. अवधेश ने बाकायदा निमंत्रणपत्र छपवा कर कई लोगों के साथ मुझे भी भेजा. निमंत्रणपत्र पढ़ने के बाद मुझे कुछ अजीब लगा, सुंदरकांड? मैं सोचने लगा, भला कांड भी कभी सुंदर हुआ है? आज तक मैं ने जितने भी कांड देखे सब के सब कुरूप ही थे. फिर चाहे कांडा का कांड हो या अन्य कोई कांड या घोटाला. बहरहाल, नियत समय पर मैं अवधेश के घर पहुंच गया. घर के बाहर एक खूबसूरत शामियाना बंधा था. लोगों को बैठने के लिए कुरसीटेबल की अच्छी व्यवस्था थी. ठीक सामने एक ऊंचा सा मंच बना था. शायद यहीं पर सुंदरकांड का आयोजन होगा. एक कोने में भोजन की व्यवस्था थी, जिस की महक चारों ओर फैल रही थी. मैं ने मन ही मन सोचा, सुंदरकांड चाहे जैसा भी हो परंतु अभी तो खुशबू से पता चलता है कि भोजन स्वादिष्ठ ही होगा. तकरीबन सभी मेहमान आ गए थे. मैं ने अवधेश से उत्सुकता से पूछा, ‘‘भाई, पहले यह बताओ, यह सुंदरकांड होता कैसे है? क्या किसी नेतामंत्री को बुलाया है? क्योंकि जहां तक मेरा खयाल है, इन के बिना कोई कांड होता ही नहीं है. ये महानुभाव जहां खड़े हो जाते हैं कांड अपनेआप हो जाता है और अगर नहीं होता है तो ये कर आते हैं.’’

अवधेश मेरी अल्पबुद्धि पर हंसने लगे, ‘‘यार, तुम जिस कांड की बात कर रहे हो वह यह कांड नहीं है. यह रामायण का सुंदरकांड है.’’ मेरी अज्ञानता पर तरस खा वे मुझे विस्तार से समझाने लगे, ‘‘तुम जो समझ रहे हो वह यह कांड नहीं है. यह तो रामचरितमानस का एक कांड है.’’ मैं ने तपाक से कहा, ‘‘हां, याद आया, रामचरितमानस में तो कांड ही कांड हैं, जैसे बाली हत्याकांड, सीता अपहरण कांड, रामरावण युद्ध कांड, लंका कांड, अग्नि कांड...’’

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