‘‘साहब ने कल 5 बजे पेयजल पर मीटिंग बुलाई है. नोट आज ही चाहिए, शाम को बात होगी,’’ पी.एस. का फोन था, जिसे सचिव महोदय ने उठाया था.

‘‘ठीक है, चीफ से बात कराओ,’’ उन्होंने अपने पी.ए. से कहा.

‘‘सर, लाइन पर हैं.’’

‘‘अरे, सुनो, सी.एम. को नोट चाहिए, लेटेस्ट, जो ग्राउंड वाटर गिरा है, जहां टे्रन लगानी पड़ेगी...वह जगह बताओ. कहां से पानी पहुंचाना होगा, रेलवे वालों से बात करनी है.’’

‘‘वह माथुर कहां है?’’

‘‘माथुर, बुलाता हूं, सर वह आज...’’

‘‘आज क्या...’’

‘‘इंडियाश्रीलंका मैच आ रहा है, सर. सब टी.वी. पर चिपके हैं.’’

‘‘यह दफ्तर है या घर. आप को चीफ रहना है या नहीं. लाइन में 7 हैं और यहां इस सीट पर 50. न आप रहेंगे न मैं. नोट ले कर तुरंत आइए,’’ और उन्होंने फोन रख दिया.

टीवी पर सहवाग खेल रहा था.

‘‘क्या हुआ? क्या चौका मारा...’’ उन्होंने सामने बैठे अपने सहयोगी सचिव भातखंडे से पूछा, जो आजकल अभाव अभियोग में अपनी यातना की अवधि को काट रहा था.

‘‘जले पर नमक इसे ही कहते हैं. क्या कह रहा था कि देशपांडे इस सीट पर 50 लगे हैं. वह मुझे भी शक की निगाह से देखता है,’’ वह बोले.

‘‘चलूं यार, उधर भी तो सी.एम. का मैसेज आ गया होगा.’’

‘‘वह शिकायतों पर नोट मंगा रहे होंगे,’’ उन्होंने उठते हुए कहा.

‘‘नहीं यार, यह तो सी.एम. की बैठक का चक्कर है. उधर बम भी फूटने लग गए हैं. जयपुर में फूटे, बंगलौर में फूटे, अब अहमदाबाद और दिल्ली में भी फूट गए हैं. फील गुड फैक्टर की तैयारी चल रही थी, लगता है कुछ नया सोचना होगा. गुड, बैड में बदल सकता है.’’

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