महल्ले के मध्य में घर और आनेजाने के लिए चार तरफ से रास्ते. चारों रास्तों पर बीच वाले घर में शादी होने से शादी का शामियाना तान दिया गया है. अब वे लोग कहां से निकलें जिन का घर इन रास्तों के बाद आता है. उन से कहा गया कि भाई, आगे हमारा घर है, हमें जाना है. आप रास्ता न रोकें. उन का उत्तर था, ‘‘तो क्या हम शादी न करें. हमारी खुशी आप से बरदाश्त नहीं हो रही है. दूसरे रास्ते भी तो हैं.’’

‘‘लेकिन दूसरे रास्तों में भी तंबू तने हुए हैं. कुरसियां लगी हुई हैं. वे भी यही कर रहे हैं.’’

वे गुस्से से बोले, ‘‘हम भी यही कह रहे हैं. शादी तो हो कर रहेगी.’’

हम ने कहा, ‘‘आप शादी करें. मेरी तरफ से बधाई भी स्वीकारें किंतु घर जाने का रास्ता तो खोलें.’’ वे फिर गुस्से में बोले, ‘‘आप के घर का रास्ता मेरे घर के आगे से जाता है तो इस में मेरा क्या कुसूर. इतनी ही तकलीफ है तो किसी और कालोनी में मकान लेना था.’’ अब हमें भी गुस्सा आ गया, ‘‘आप को शादी का इतना शौक है तो कोई लौन बुक कराना था. रास्ता घेर कर क्यों बैठ गए. यह कोई तरीका है. आप ने आनेजाने वालों के बारे में जरा भी नहीं सोचा.’’ उन्होंने कहा, ‘‘देखिए साहब, शादी वाला घर है. सौ टैंशन होती हैं दिमाग में. आप व्यर्थ में बहस मत करिए. इतना रुपया नहीं है कि महंगे लौन को किराए पर लें. हमारे तो सारे कार्यक्रम घर के सामने वाले रास्ते पर ही होते हैं. घर हमारा है तो सामने का रास्ता भी हमारा है. हम अपने रास्तों का उपयोग भी न करें? क्या आप एकदो दिन तकलीफ नहीं सह सकते इंसानियत के नाते?’’

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