हेजीव, भरी जवानी में भी पपीहे की तरह दालदाल क्यों पुकार रहा है? ले, रेल नीर पी, कुछ अपने रोने को विराम दे. जमाखोरी कर गरीबों के पेट पर लात मारने वालों को मन से सलाम दे. एक गुप्त रहस्य सुन, दाल मिथ्या है, दाल भ्रम है. दाल घमंडी है, दाल बेशर्म है. ऐसी दाल न खाना सत्कर्म है. ऐसी दाल खाना नीच कर्म है. जो दाल खाते हैं वे नरक को जाते हैं. जो बिन दाल के रोटी खाते हैं वे अमरत्व पाते हैं. दाल खाने से बौडी में प्रोटीन बढ़ता है. दाल खाने से जोड़ों में दर्द होता है. जोड़ों में दर्द होने से जीव दिनरात रोता है. तब वह घर में घर वालों की गालियां सुनता है. न जाग पाता है न हौस्पिटल में चैन से सोता है. इसलिए दालदाल मत रट. रामराम रट. दाल से ज्यादा बलशाली राम हैं. दाल से बड़ा राम का नाम है. भवसागर पार हो जाएगा. वहां जा कर तू हरदम दाल ही दाल खाएगा. तब तू दाल के टोटे से शरीर में हुई हर कमी पर विजय पाएगा. झूमेगा, गाएगा.

रोटी के साथ दाल खाना पाप है. पाप से बचने के लिए घीया खा, पालक खा, करेले खा, केले खा, सरसों का साग खा, मेरे बनाए शुगरफ्री बिस्कुट खा. मेरे नूडल्स खा. अमरत्व पा. दाल को परे छोड़. योग कर. आगे बढ़. योग आटादाल से मुक्ति दिलाता है. योग, बिन दालप्याज जीना सिखाता है. अभाव पर भाव को विजय पाने दे. दाल, प्याज के प्रति अपना भाव बदल. सरकार के प्रति अपना भाव बदल. लोकतंत्र के प्रति अपना भाव बदल. जि गी के प्रति अपना भाव बदल. जीने का सब से बेहतर तरीका अभाव नहीं, भाव है. सोच ले, दाल का अस्तित्व ही नहीं. फिर जो है ही नहीं, उस का अभाव कैसा? राम ने जैसे रावण पर विजय पाई, तू वैसे ही जिंदगी की हर अति आवश्यक जरूरत पर विजय पा. मंगल पर कदम रखने के बाद भी कोई रोता है पगले?

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...