गुलाबचंद महीनेभर के सफर के बाद थकेमांदे घर वापस आए थे. अटैची को रख कर सोफे पर अधलेटे हुए ही थे कि मेज पर रखे शादी के एक न्योते पर नजर पड़ गई.

गुलाबचंद ने पास बैठी अपनी श्रीमतीजी से पूछा, ‘‘यह न्योता किस का है?’’

श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘आप के बचपन के लंगोटिया यार मंत्रीजी आज ही दे गए हैं. उन के लाड़ले की शादी अपने इलाके के सांसदजी की बेटी से चट मंगनी पट ब्याह वाली तर्ज पर तय हो गई है. आप को बरात में चलने के लिए कह गए हैं.’’

खुशी और हैरानी से न्योते के कार्ड को जैसे ही उठाया, लिफाफे पर लिखी गई इबारत पर नजर पड़ते ही गुलाबचंद के दिमाग में अजीब सी हलचल मच गई. उन के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘छपाई में इतनी बड़ी गलती हो गई और मंत्रीजी का इस पर ध्यान ही नहीं गया...’’

श्रीमतीजी भी कुछ चौंक कर बोलीं, ‘‘क्या गलती हो गई? मैं ने तो इसे अभी तक छुआ भी नहीं है. आप के आने के तकरीबन घंटाभर पहले ही तो दे गए हैं मंत्रीजी.’’

गुलाबचंद ने वह कार्ड श्रीमतीजी को थमा दिया. देखते ही वे भी हैरानी से सन्न रह गईं.

बात थी ही कुछ ऐसी. लिफाफे के बाहर और भीतर ‘पाणिग्रहण संस्कार’ की जगह ‘गठबंधन संस्कार’ छपा था.

इस कमबख्त एक शब्द के चलते गुलाबचंद महीनेभर की थकान भूल से गए और उन्होंने श्रीमतीजी से कहा, ‘‘मंत्रीजी को फोन मिलाओ.’’

श्रीमतीजी ने कहा, ‘‘अभीअभी थकेमांदे इतने दिनों बाद आए हो... पहले फ्रैश हो कर कुछ चायनाश्ता कर लो, बाद में आराम से मंत्रीजी से बात करना.’’

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