इधर घर का बोझ ढोतेढोते जब से मेरा हीमोग्लोबिन कम और ब्लडप्रैशर हाई हुआ, तो घर में कुहराम मच गया. घर में सभी लोग मुझे एक से बढ़ कर एक कभी न सुने सुझाव देने लगे. मैं ने पहली बार ऐसा महसूस किया कि घर के लोग मेरे लिए भी परेशान होते हैं. घर वालों का अपने प्रति इतना लगाव देखा, तो मेरी आंखोें में पानी न होने के बाद भी आंसू छलक पड़े. कोई कहता कि तुम मीठा कम खाओ, तो कोई कहता कि हंसना बंद कर दो. कोई आ कर मुझे नमक न खाने की सलाह दे जाता, तो कोई रिश्वत न खाने की. दरअसल, हाई ब्लडप्रैशर उन लोगों के पास ज्यादा रहता है, जो हरदम हंसते रहते हैं. मुरदा चेहरों से उसे भी नफरत है.

मेरे एक रसिया दोस्त को जब पता चला कि मैं हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो गया हूं, तो वह आते ही मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘मेरे दोस्त, अब वक्त आ गया है कि इधरउधर ताकझांक बंद कर दो. इस उम्र में हाई ब्लडप्रैशर होने की असली वजह बस एक यही होती है.’’ ऐसी सलाह पर मुझे उस दोस्त पर इतना गुस्सा आया कि...

पत्नी ने मेरी हालत देख कर मुझे कई बार अस्पताल जाने को कहा, पर मैं हर बार टाल गया. मैं यह बात अच्छी तरह जानता हूं कि एक बार जो डाक्टर के चुंगल में फंस गया तो समझो कि मारने के बाद भी जो डाक्टर मरीज को छोड़ दे, वह डाक्टर ही किस बात का. आखिरकार पाउडरशाउडर से प्यार करने वाली मेरी पत्नी उस दिन मुझे जबरदस्ती अस्पताल ले ही गई. अस्पताल जाते ही मैं ने देखा कि डाक्टर साहब मरीजों का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. मुझे अपने सामने पा कर वे मुझ पर ऐसे झपटे, जैसे चील अपने शिकार पर झपटती है. मुझ से ज्यादा परेशान होते डाक्टर साहब ऐसे बोले, जैसे ब्लडप्रैशर मेरा नहीं, बल्कि उन का बढ़ा हो. सच्चे डाक्टर की आज की तारीख में यही पहचान है कि वह मरीज को देख कर मरीज से ज्यादा परेशान हो जाता है. होना भी चाहिए. एक सच्चा पंडित और एक सच्चा डाक्टर अगर अपने यजमान और मरीज को डराएगा नहीं, तो खाएगा क्या?

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