भोपाल के पौश इलाके दस नंबर मार्केट के नजदीक एक नामी मनोचिकित्सक के बंगले में नजदीक के शहर विदिशा से अधेड़ राजेश कुमार (बदला नाम) अपनी 27 साल की बेटी नेहा (बदला नाम) को पिछले 3 साल से एक नियमित अंतराल से ले कर आ रहे हैं. वेटिंगहौल में ज्यादा नहीं, कुल 5 मरीज हैं जिन की हरसंभव कोशिश एकदूसरे से नजर चुराती साफ नजर आती है. अपने पिता से 2 कुरसी छोड़ कर बैठी नेहा देखने में निहायत ही खूबसूरत और आकर्षक युवती है. मांग में उस ने गहरा लाल सिंदूर कुछ जरूरत से ज्यादा ही भर रखा है जो बरबस ही देखने वालों का ध्यान अपनी तरफ खींचता है.

शाम के 7 बजे हैं. राजेश अपनी कार से 5 बजे ही यहां आ गए थे. उन के हावभाव देख लग रहा था कि वे इस बंगलेनुमा क्लीनिक के उबाऊ माहौल के आदी हो गए हैं. लेकिन नेहा गहरी सोच में डूबी हुई नजर आई. कुछ सोचतेसोचते वह मुसकरा देती है तो यह असामान्यता खुद बता देती है कि उसे यहां क्यों लाया जाता है. बातचीत करने पर राजेश उस के बारे में बताने से ज्यादा हिचकिचाए नहीं कि नेहा बेहद प्रतिभाशाली छात्रा रही है. उस ने एमए हिंदी साहित्य से किया है और अतुकांत कविताएं खूब अच्छी लिखती है. 3 साल पहले उस की शादी धूमधाम से भोपाल केएक नौकरीपेशा युवक अभिनव (बदला नाम) से हुई थी.

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लेकिन शादी के 3-4 महीने बाद ही अभिनव उसे विदिशा छोड़ गया और उस ने साफ तौर पर कहा कि वह इस पागल लड़की के साथ जिंदगी नहीं काट सकता. राजेश पर इलजाम मढ़ते हुए उस ने कहा कि आप ने हमें धोखा दिया है, नेहा सामान्य नहीं है. उसे अकसर दौरे पड़ते हैं. उस दौरान वह असामान्य व्यवहार करते हुए ऊटपटांग बातें करने लगती है और सीधेसीधे काल्पनिक दुनिया में पहुंच जाती है, जिस का हकीकत से कोई वास्ता नहीं होता. यह नौबत आएगी, इस का एहसास राजेश को था. वजह, वाकई उन्होंने शादी के वक्त कुछ बातें अभिनव और उस के परिजनों से यह सोचते हुए छिपाई थीं कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. लेकिन यह नौबत इतनी जल्दी आ जाएगी, इस काअंदाजा उन्हें नहीं था. न ही दामाद की बातों और सवालों का कोई सटीक जवाब या बचाव का रास्ता उन के पास था.

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