एक बार एक मधुमक्खी ने मेरी गरदन में डंक मारा तो मेरे पति फौरन घर के भीतर से आलू का आधा टुकड़ा काट कर लाए और फिर उसे डंक वाली जगह पर रख दिया. ऐसा करने से डंक का असर कम करने में मदद मिलती है, लेकिन कुछ दिनों तक दर्द बना रहता है. राजीव और सोनिया एक बार बच्चों के साथ पिकनिक मनाने गए थे. बच्चों में से किसी ने वहां ततैयों के छत्ते पर पत्थर मार दिया. फलस्वरूप ततैयों के झुंड ने सभी को कई डंक मारे. ये लोग कई दिनों तक बीमार रहे. अच्छी बात यह रही कि इन में से कोई भी जहर के प्रति ऐलर्जिक नहीं था, क्योंकि जो जहर के प्रति ऐलर्जिक होता है उस की तो एक ही डंक से जान पर बन आती है.

मधुमक्खी भी हैं खतरनाक: जब मधुमक्खी काटती है, तो वह मर जाती है, क्योंकि उस का डंक उस के पेट का हिस्सा होता है. डंक मारते समय यह व्यक्ति के शरीर में ही टूट जाता है. यदि डंक को शरीर से न निकाला जाए तो जहर फैलने लगता है और बहुत दर्द होता है. मधुमक्खियों का परागण के लिए बेहद महत्त्व है. इन का शहद भी लोग बड़े चाव से खाते हैं. 2000 से चलन में आए निकोटिनौइड पेस्टीसाइड्स ने इस प्रजाति को 70% तक खत्म कर दिया. पता नहीं हमारी युवा पीढ़ी ने मधुमक्खियों को देखा भी है या नहीं. आइए, आप को इन के उस समय में ले चलते हैं जब ये इतिहास बनाया करती थीं:

योद्धा मधुमक्खियां: ‘सिक्स लैग्ड सोल्जर्स’ किताब के अनुसार, युद्ध में मधुमक्खियों का प्रयोग पहली बार तब किया गया था जब इनसान गुफाओं में रहता था. युद्ध करने वाले कबीलों के लोग मधुमक्खियों के छत्तों को रात में उस समय काट लेते थे जब वे शांत होती थीं और घुसपैठियों को ठीक से देख नहीं पाती थीं. ये योद्धा छत्ते को गीली मिट्टी से ढक देते थे ताकि मधुमक्खियां छत्ते से बाहर न निकल सकें. फिर हमला करने से पहले इन छत्तों को दुश्मन की गुफाओं में फेंक देते थे. छत्ता टूटते ही गुस्से से पागल मधुमक्खियां बाहर निकल कर गुफा के लोगों को डंक मारने लगती थीं. गुफा के लोग बचने के लिए बाहर भागते थे तो वहां हमला करने वाले घात लगा कर बैठे रहते थे.

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