आज जिस तरह की भागमभाग संस्कृति वाली जीवनशैली विकसित हो रही है उस से मानव मशीन की तरह काम करने लगा है. प्रकृति से नाता टूटता जा रहा है. प्रकृति से दूर रहने का खमियाजा भी लोग भुगत रहे हैं. शारीरिक रुग्णता आज आम बात हो गई है. इस का प्रभाव मानसिक विकास को अवरुद्ध करता है. इस से दिमागी शक्ति कमजोर होती है. इस कमजोर हुई दिमागी शक्ति को फिर से प्राप्त करने के लिए की जाने वाली कसरत का नाम है- न्यूरोबिक ऐक्सरसाइज.

जानेमाने न्यूरोबायोलौजिस्ट डा. लौरेंस केट्ज और डा. मेनिंग रुबिन ने मस्तिष्क के लिए ‘न्यूरोबिक’ नामक दिमागी ऐक्सरसाइज का नया तरीका ईजाद किया है. इन दोनों न्यूरोबायोलौजिस्टों ने मिल कर ‘कीप योर ब्रेन अलाइव’ नामक पुस्तक भी लिखी है. डा. लौरेंस तथा डा. रुबिन द्वारा ईजाद की गई न्यूरोबिक पद्धति दिमाग के लिए फायदेमंद है. इस पर अमल कर के दिमाग के तमाम ‘न्यूरल लिंक्स’ को ऐक्टिव बनाया जाता है.

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दिमागी निष्क्रियता के कारण

रुटीन जिंदगी :

आमतौर पर अधिकतर लोग एक ही तरह की जीवनशैली को जीवन जीने की राह बना लेते हैं. उन का ढर्रा एक ही होता है. मसलन, सुबह 8.30 बजे तक औफिस जाने के लिए तैयार हो जाना, 9 बजे घर से निकल जाना, वही रास्ते, वही पगडंडियां होते हुए बस या स्कूटर पर सवार हो कर 10 बजे तक किसी तरह औफिस पहुंच जाना. औफिस में वही रुटीन वर्क. शाम को 6 बजे औफिस से निकलना. घर जाने के लिए वही रास्ता, उसी फल वाले से फल खरीदना, सब्जी वाले से सब्जी, उसी ठिकाने पर ब्रैड, बटर और बिस्कुट खरीदते हुए घर पहुंच जाना.

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