अभिषेक की कबड्डी
पिछले एक दशक से बौलीवुड की हस्तियों ने खेलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है. पहले क्रिकेट, उस के बाद हौकी, फिर टैनिस के बाद अब कबड्डी जैसे खेलों को बढ़ावा देने के लिए आईपीएल की तर्ज पर प्रो कबड्डी लीग यानी पीकेएल की बारी है.
मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन के पुत्र अभिषेक बच्चन ने हाल ही में जयपुर कबड्डी टीम खरीद ली है. इस टूर्नामैंट का आयोजन इस वर्ष जुलाईअगस्त में किया जाएगा. 8 शहरों पर आधारित ये टूर्नामैंट घर और बाहर दोनों जगह खेले जाएंगे. इस में 72 भारतीय और पाकिस्तानी खिलाड़ी होंगे जबकि 28 विदेशी. खिलाडि़यों की नीलामी होगी.
टीम के मालिक बनने के बाद अभिषेक बच्चन का कहना था कि यह सम्मान की बात है. यह सस्ता खेल है लेकिन योग्यता की बहुत जरूरत होती है. इन दिनों हर खेल पर कारोबारियों की नजर टिकी हुई है लेकिन एक अच्छी बात यह है कि इस से खिलाडि़यों को एक पहचान मिल रही है. कबड्डी को बढ़ावा देने के लिए जब बड़ीबड़ी हस्तियां इस पर अपना पैसा लगाएंगी तो निश्चित ही कबड्डी के दिन वैसे नहीं रहेंगे और घास के मैदान और मिट्टी में खेलने वाले खिलाड़ी अब मखमली घास व महंगे कारपेट पर खेलते नजर आएंगे और खिलाडि़यों के भी दिन फिर जाएंगे.
 
डोपिंग एक गंभीर समस्या 
जमैका के मशहूर धावक और 100 मीटर के पूर्व रिकौर्डधारी ऐथलीट असाफा पावेल को जमैका के डोपिंग रोधी अनुशासन पैनल ने 18 महीने के लिए प्रतिबंधित कर दिया. पावेल का डोप टैस्ट पिछले वर्ष राष्ट्रीय प्रतियोगिता के दौरान किया गया था जिस में पावेल ने स्टीमुलैंट औक्सिलोफ्रीन जैसे प्रतिबंधित पदार्थ का सेवन किया था. 31 वर्षीय पावेल पर यह प्रतिबंध 21 जून, 2013 से लागू होगा.
डोपिंग के ये मामले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहले भी उठते रहे हैं लेकिन ऐसे मामले कम होने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं. विदेशों में तो ये मामले कुछ ज्यादा ही हैं. विदेशी खिलाड़ी अपने खेल के प्रदर्शन को सुधारने के लिए डोपिंग का सहारा लेते हैं, समयसमय पर वे पकड़े भी जाते हैं. सवाल उठता है कि डोपिंग मामले पर खेल प्रशासन इतना सुस्त क्यों है?
अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी की नियमों की बात करें तो डोपिंग के लिए सिर्फ खिलाड़ी ही जिम्मेदार होते हैं. शायद इसलिए खेल प्रशासन या खेल संघ इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते लेकिन खेल प्रशासन के ढुलमुल रवैये से यह बीमारी महामारी की तरह बढ़ती ही जा रही है जो खेल के लिए चिंता का विषय है.
ऐसा नहीं है कि डोपिंग मामले में केवल विदेशी खिलाड़ी ही शामिल होते हैं, ऐसे मामलों में भारतीय खिलाड़ी भी कम नहीं हैं. भारत में ऐथलेटिक्स के अलावा बाकी खेलों में भी डोपिंग के मामले समयसमय पर आते रहे हैं.
पिछले वर्ष इंटरनैशनल ऐथलेटिक्स फैडरेशन ने 44 भारतीय खिलाडि़यों पर डोपिंग के आरोप लगाए और उन्हें निलंबित कर दिया था. नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी यानी नाडा के महानिदेशक मुकुल चटर्जी ने भी माना था कि डोपिंग के बढ़ते मामले वाकई चिंता का विषय हैं.
पिछले वर्ष ही अखबारों की सुर्खियां बनी थीं जब साइकिलिंग की दुनिया के महान खिलाड़ी लांस आर्मस्ट्रांग ने डोपिंग की बात कुबूली थी. उस के बाद आर्मस्ट्रांग से ओलिंपिक पदक भी छीन लिया गया था. आस्ट्रेलियाई खेल जगत के लिए वह काला दिन था. आस्ट्रेलियाई अपराध आयोग ने अपनी जांच में पाया था कि खिलाड़ी कई प्रतिबंधित दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं.
बहरहाल, प्रतिबंधित पदार्थों का सेवन करना डोपिंग विरोधी नियमों का सरासर उल्लंघन है और ऐसे नियमों का उल्लंघन करने वालों के साथ सख्त से सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए, चाहे वह देशी खिलाड़ी हो या विदेशी. पावेल पर प्रतिबंध लगा कर डोपिंग रोधी अनुशासन पैनल ने सही किया है. यह खिलाडि़यों के लिए सबक है. खेल को खेल की तरह खेलें वरना आर्मस्ट्रांग जैसे महान खिलाड़ी को हीरो से जीरो बनते देर नहीं लगती.      

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