साई की परेशानी 
भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई इन दिनों खासा परेशान है. वजह, आम चुनाव के कारण सरकार की तरफ से उसे तुरंत आर्थिक मदद नहीं मिल पाई है. इस वर्ष राष्ट्रमंडल खेल 23 जुलाई से 8 अगस्त तक स्कौटलैंड के ग्लासगो शहर में और एशियाई खेल 19 सितंबर से 4 अक्तूबर तक साउथ कोरिया के इंचियोन शहर में होने हैं.
साई की परेशानी यह है कि उसे अंतरिम बजट के लिए काफी कम पैसा मिला है. साई के महानिदेशक जिजि थौमसन का मानना है कि खिलाडि़यों की तैयारी के लिए हमारे पास पैसा पर्याप्त होना चाहिए. सभी राष्ट्रीय खेल महासंघ अपने खिलाडि़यों को अभ्यास के लिए विदेश भेजना चाहते हैं पर पर्याप्त पैसा नहीं है जिस से हम अपने सभी खिलाडि़यों को विदेश नहीं भेज सकते. ऐसे हालात में राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में बेहतर कर पाना मुश्किल है. उम्मीद यही है कि चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार खिलाडि़यों की बेहतरी के लिए हमें पर्याप्त धन मुहैया कराएगी. वर्ष 2010 में भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों में 101 और एशियाड में 65 पदक जीते थे जबकि इस वर्ष राष्ट्रमंडल खेलों में 75 पदकों का लक्ष्य रखा गया है. इस बार टैनिस और तीरंदाजी खेल नहीं हैं. ऐसे में लक्ष्य को पूरा कर पाना मुश्किलों भरा है.
खेलों के स्तर को सुधारने के लिए न तो सरकार ध्यान दे रही है और न ही खेल संघों के पदाधिकारियों को इस से कोई लेनादेना है. सभी जानते हैं कि खेल संघ अब राजनीति का अखाड़ा बन चुके हैं जो खेलों का सत्यानाश करने पर तुले हैं.
राष्ट्रीय खेलों में खिलाडि़यों के स्तर को सुधारने के लिए विदेशों में विशेष ध्यान दिया जाता है जबकि भारत में इस की उपेक्षा की जाती है. अंतरिम बजट में 1,219 करोड़ रुपए खेलों के हिस्से में आए थे जिस में से 165 करोड़ रुपए राष्ट्रीय खेल महासंघों के लिए रखे गए हैं. जाहिर है ऐसे में इतने कम पैसों में सभी खिलाडि़यों को अभ्यास के लिए विदेश नहीं भेजा जा सकता.
बहरहाल, राष्ट्रीय खेलों के लिए जितना पैसा रखा गया है उस से कहीं ज्यादा पैसा चुनावों के दौरान यहां बड़े नेता हवाई यात्रा में फूंक देते हैं. इस पर कोई होहल्ला नहीं मचाता. हल्ला तो खेलों के लिए भी नहीं मचता, अगर मचता तो शायद खिलाडि़यों की खेल क्षमता काफी बेहतर होती.
 
स्टीवी की क्लास
फीफा वर्ल्ड कप 2014 में अब कुछ दिन ही शेष बचे हैं और धीरेधीरे फुटबाल प्रेमियों के बीच हलचल भी शुरू हो गई है. फीफा वर्ल्ड कप से भारत के उभरते युवा खिलाडि़यों को सीखने का अच्छा मौका है. अर्जेंटीना, जरमनी, ब्राजील, क्रोएशिया, स्पेन, पुर्तगाल, मैक्सिको, चिली, आस्ट्रेलिया, ग्रीस आदि टीमों के आगे भारत कहीं नहीं है. इस की खास वजह है कि भारतीय खिलाडि़यों को उस स्तर की ट्रेनिंग नहीं दी जाती. पिछले दिनों स्कौटलैंड के फुटबाल कोच स्टीवी ग्रीन 2 दिवसीय कोचिंग कैंप के लिए चंडीगढ़ पहुंचे. वहां उन्होंने युवा खिलाडि़यों को फुटबाल खेलने के गुर बताए और कहा कि भारत में अगर फुटबाल को बुलंदियों तक पहुंचाना है तो जमीनी स्तर से तैयारी करनी होगी. यहां टैलेंट की कमी नहीं है. बस, जरूरत है सही दिशा दिखाने की. स्कूली लेवल से ही खिलाडि़यों को जागरूक करना होगा तभी वे धीरेधीरे रुचि लेंगे और फुटबाल के प्रति उन का रुझान बढ़ेगा.
जहां तक फिटनैस की बात है तो फुटबाल में फिटनैस बहुत जरूरी है और इस के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहना होगा. कहने का तात्पर्य यह है कि आप को फिट रहना होगा. इस के लिए कोच का मार्गदर्शन बहुत ही जरूरी है. कोच को भी आधुनिक तकनीक के बारे में समयसमय पर जानकारी रखनी चाहिए ताकि इस का भरपूर फायदा आप को मिल सके.
स्टीवी ने युवा खिलाडि़यों के लिए जितनी बातें बताईं वे सराहनीय हैं. अब तो आईपीएल की तर्ज पर आईसीएल से भी फुटबाल खिलाडि़यों के दिन फिरने वाले हैं. खिलाडि़यों को इस से न सिर्फ आर्थिक लाभ होगा बल्कि अब उन्हें विदेशी खिलाडि़यों के साथ खेलने पर बहुतकुछ सीखने का भी मौका मिलेगा. उन के द्वारा अपनाई गई नईनई तकनीकों को भी जानने व समझने का उभरते खिलाडि़यों को मौका मिलेगा.

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