बेटियां नहीं हैं पीछे

आज हर क्षेत्र में लड़कियां कामयाबी की सीढि़यां चढ़ रही हैं. गणतंत्र दिवस परेड में महिला सशक्तीकरण की झांकी महिलाओं की उपलब्धियों का उदाहरण थी. महिलाओं की इसी महत्ता को महिमामंडित करने के लिए 8 मार्च को ‘वर्ल्ड वूमंस डे’ मनाया जाता है. टैलीविजन, पत्रपत्रिकाएं, समाचारपत्र महिलाओं की उपलब्धियों को सामने लाने में पीछे नहीं रहते. घर की चारदीवारी को लांघ कर महिलाओं ने अपना दमखम खेलों में भरपूर दिखाया है. हरियाणा की 2 बहनें गीता और बबीता ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुश्ती में अपने दमखम से विरोधी पहलवानों को चित कर के अनेक पदक जीत कर उस समाज को, उन लोगों को बदल दिया है जो यह सोचते हैं कि महिलाओं का काम सिर्फ चूल्हाचौका, बच्चे जनना, घर संभालना है. सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा, दीपिका पल्लीकल, आकांक्षा सिंह, सुनीता रौय, ज्वाला गुट्टा, प्राची तेहलान, तान्या सचदेव, दीपिका कुमारी जैसी महिला खिलाडि़यों ने यह साबित कर दिया है कि हम किसी से कम नहीं.

हमारे देश में मातापिता ही बेटी को खेल के क्षेत्र में जाने से रोकते हैं. वजह शारीरिक, सामाजिक, वैवाहिक अड़चनें आड़े आती हैं. लेकिन ऐसी सोच गलत है, वजह बेबुनियाद है. उन्हें एक मौका तो दीजिए. उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, फिर देखिए बेटों से बढ़ कर साबित होंगी बेटियां. गीता और बबीता के पिता महाबीर सिंह तारीफ के काबिल हैं जिन्होंने अपनी दोनों बेटियों को पहलवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ने की हौसलाअफजाई की. नतीजतन, आज दोनों फ्री स्टाइल रेसलिंग में एक के बाद एक सफलता हासिल कर महिला पहलवानों के लिए आइकन बन गईं. तभी तो कहते हैं, बेटियां एक घर नहीं, दोदो घरों का नाम रोशन करती हैं.

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