सुशील कुमार एक बड़े व इंटरनैशनल पहलवान हैं पर जिस तरह से रियो ओलिंपिक के दंगल के लिए वे प्रधानमंत्री कार्यालय, खेलमंत्रालय से ले कर हाईकोर्ट तक पहुंच गए. ऐसा करना कहीं से भी तार्किक नहीं लगता. अब तक की यही परंपरा रही है कि जिस ने कोटा लिया है वही हकदार होता है और पहलवान नरसिंह ने 74 किलोग्राम भार में लास वेगास में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में देश को रियो ओलिंपिक का कोटा दिलाया है और वे रियो के लिए क्वालिफाई कर चुके हैं. जिस समय क्वालिफाइंग चैंपियनशिप हुई थी तब सुशील कुमार कंधे की चोट की वजह से इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाए थे लेकिन अब वे फिट हैं तो वे चाहते हैं कि नरसिंह यादव के साथ एक ट्रायल मैच करा लें और खेलमंत्रालय फैसला कर ले कि कौन रियो ओलिंपिक में हिस्सा लेगा. रेसलिंग फेडरेशन औफ इंडिया ने इस नूराकुश्ती पर साफ कर दिया कि वे परंपरा के मुताबिक ही चलेंगे यानी नरसिंह ही रियो के लिए दावेदार हैं. फैडरेशन का भी कहना सही है क्योंकि सुशील कुमार को अगर ऐसा मौका दिया जाता है तो दूसरे पहलवानों के साथ भी ऐसा होना चाहिए. सुशील की हठधर्मिता कहीं से भी ठीक नहीं लगती. वे मैडल जीत कर देश का नाम रोशन कर चुके हैं और दूसरे पहलवानों के प्रेरणास्रोत भी रहे हैं.

हां, नरसिंह अगर अनफिट होते तो ऐसा किया जा सकता था पर ऐसा नहीं है. नरसिंह फिट भी हैं और उन का मानना है कि वे सुशील से किसी भी माने में कम नहीं हैं. उन्होंने लास वेगास में कड़े मुकाबले में जीत कर यह साबित भी किया है. सुशील के कई साथी भी चाहते हैं कि ऐसा करना ठीक नहीं है और ट्रायल नहीं होना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो पूरी दुनिया में गलत मैसेज जाएगा. जो इस के लिए हकदार हैं उन्हें ही रियो में जाना चाहिए. केवल पिछले मैडल के आधार पर रियो का टिकट पक्का नहीं समझना चाहिए. सुशील की यह हठधर्मिता ठीक नहीं.

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