खिलाडि़यों को संसद के दोनों सदनों में विभिन्न दलों द्वारा भेजा जाता रहा है. केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति खेल, कला, विज्ञान और समाजसेवा जैसे क्षेत्रों से चुने गए लोगों को राज्यसभा के सदस्य के तौर पर मनोनीत करते हैं.

मोदी सरकार ने पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू और मुक्केबाज मैरी कौम सहित कुल 6 लोगों को संसद पहुंचा दिया. इस से पहले कांग्रेस महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को संसद पहुंचा चुकी है. कांग्रेस ने सचिन का चयन इसलिए किया था क्योंकि महाराष्ट्र में कांग्रेस का जनाधार बढ़े. ठीक वैसे ही भाजपा ने नवजोत सिंह सिद्धू का चयन किया है ताकि पंजाब विधानसभा चुनाव में भाजपा को फायदा मिले.

इतिहास गवाह है कि जितने भी खिलाड़ी संसद तक पहुंचे हैं चाहे वे राज्यसभा में हों या लोकसभा में, किसी ने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसे उन्हें याद रखा जाए. नवजोत सिंह सिद्धू और मैरी कौम से भी यही उम्मीद है क्योंकि इन खिलाडि़यों के पास संसद में आने का न तो समय होता है और न ही वे किसी मुद्दे पर गंभीरता से सोचते हैं.

सचिन तेंदुलकर संसद के सत्र में कितने मौजूद रहते हैं, यह कहने की जरूरत नहीं. सांसद खिलाडि़यों को तब याद रखा जाता जब ये अपने सांसद निधि या खेलों की दशा सुधारने के लिए काम करते, खेलों से जुड़े मुद्दों को उठाते. पर ये तो अपनेअपने राजनीतिक दलों के रबर स्टैंप हैं. केवल यही नहीं राज्यसभा में जितने भी सांसद हैं वे सभी एक तरह से रबर स्टैंप ही तो हैं.

ऐसे में केवल रबर स्टैंप बनना और बनाना लोकतंत्र के लिए अशोभनीय है. पावर का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए होना चाहिए पर देश में विडंबना है कि संसद में घुसने का सब से सरल रास्ता राज्यसभा ही है. यहां या तो चापलूसी से घुस सकते हैं या फिर पैसों के दम पर. हां, कई ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की है और वे संसद पहुंचे हैं. मैरी कौम और नवजोत सिंह सिद्धू अपने पद की गरिमा को समझते हुए खेल के मुद्दों को गंभीरता से उठाएं. खेलों की दुर्दशा और उन्हें व्यवसाय बनाने वाले लोगों पर शिकंजा कसें, बेहतर सांसद का दायित्व निभाएं और सक्रियता दिखाएं न कि औरों की तरह रबर स्टैंप बने रहें.

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