देश की प्रमुख कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड शहर की सवारी बन कर थक चुकी है. शहर में कारों की बिक्री घट गई है. शहर मंदी की चपेट में हैं. वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही छोडि़ए, जो आर्थिक हालात हैं उन्हें देखते लगता नहीं कि मंदी थमेगी और अगले साल तक भी कारों के बाजार में तेजी आएगी. करीब एक दशक में पहली बार कार बाजार में मंदी दिख रही है और कारों की बिक्री घटी है.

वर्ष 2012-13 की कार बिक्री की इस हालत के 2013-14 में भी बने रहने की आशंका व्यक्त की जा रही है. कंपनी का कहना है कि उस की कारों की बिक्री 70 प्रतिशत से घट कर 64 फीसदी रह गई है. कार बाजार में इस साल 4.5 फीसदी की गिरावट आई है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र मंदी के इस दौर में मारुति के लिए जीवनरेखा साबित हुए. वहां उस की कारों की बिक्री 18 फीसदी बढ़ी है.

गांव की खरीदारी क्षमता से उत्साहित कंपनी इसे गांवों का अपने ऊपर ऋण मान रही है और इस ऋण को चुकाने के बहाने वह ग्रामीण क्षेत्र में अपने लिए और बाजार तलाश रही है. इस के लिए कंपनी ने विशेष योजना बनाई है. वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही तक उस ने 1 लाख गांवों में पहुंचने का लक्ष्य तय किया है.

कंपनी का कहना है कि मंदी के इस शहरी माहौल में देश के गांव उस की जीवनधारा बन कर उभरे हैं. मारुति कंपनी तो गांवों की शक्ति पहचान गई है लेकिन गांव को उस के हाल पर छोड़ने वाली हमारी सरकारों की नींद न जाने कब खुलेगी? राजनेता वोट भर के लिए गांवों की अहमियत समझते हैं. वे उन के विकास को अहमियत नहीं देते. सवाल यह है कि गांव की ताकत से आखिर हम कब परिचित होंगे?

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