पहली फरवरी 2016 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्नाकिसानों ने सरकारी बेरुखी से परेशान हो कर सड़क जाम कर दी थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ, क्योंकि चीनीमिलों को बेचे गए गन्ने के दाम पाने के लिए किसानों को हर साल धरनाप्रदर्शन करना पड़ता है. गन्नाकिसानों के अलावा दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो अपना माल बेच दे व उसे यही न पता हो कि उस का दाम कितना व कब मिलेगा  किसानों की परेशानियां यहीं खत्म नहीं होती हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ के कोल्हू व चीनीमिलें नवंबर में चालू हो जाती हैं, लेकिन इस बार ज्यादातर चीनीमिलें करीब 1 महीने देर से चलीं. इसलिए गेहूं की बोआई करने के लिए किसानों को सही समय पर खेत खाली नहीं मिले. जुलाई से सितंबर तक हर साल चीनीमिलों में मरम्मत होती है, जो इस बार 2 महीने देर तक हुई थी. इस के अलावा गन्ना पेराई के लिए सभी चीनीमिलों ने गन्ने की मांग, खरीद सेंटर व क्षेत्र रिजर्व करने आदि के बारे में कोई जानकारी भी नहीं भेजी थी. इसलिए गन्नाकिसान परेशान रहे. बहुत से किसान अब गन्ने की खेती से परेशान आ चुके हैं. ज्यादातर चीनीमिलें हर साल उन की गन्ने की पैदावार के अरबों रुपए दबा कर बैठ जाती हैं और देने का नाम ही नहीं लेतीं. गन्ने की कीमत का बकाया किसानों को मिलने के बजाय कचहरी में उलझ जाता है. इसलिए परेशान हो कर बहुत से किसान अब दूसरी फसलों को उगाने लगे हैं.

भीकुरहेड़ी मुजफ्फरनगर के किसान सुमित गन्ना छोड़ कर अब केले की सफल खेती कर रहे हैं. सुमित को गन्ने की खेती में 1 एकड़ पर होने वाले 25 हजार रुपए खर्च पर मुनाफा 50 हजार रुपए मिलता था, लेकिन गन्ने के पूरे दाम कभी समय पर नहीं मिलते थे, जबकि केले उगाने में सिर्फ 18 हजार रुपए खर्च कर के 70 हजार रुपए का मुनाफा मिलता है.

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