नोटबंदी की घोषणा के बाद से बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक में उथलपुथल मची है. यह स्वाभाविक भी है. देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालने वाले निर्णय के बाद बाजार में अनिश्चितता तो आनी ही थी लेकिन नकदी की किल्लत के कारण यह संकट और बढ़ गया. अगर नकदी का संकट गहराता नहीं तो सूचकांक के लंबी छलांग लगाने के आसार थे. नोटबंदी पर संसद से सड़क तक जो गतिरोध पैदा हुआ उस ने शेयर सूचकांक को ज्यादा अस्थिर कर दिया. रि

जर्व बैंक ने इस बीच ब्याज दरों में उम्मीद के विपरीत कटौती नहीं की, बावजूद उस के रुपया दिसंबर के पहले सप्ताह लगभग 5 सत्र तक मजबूती पर रहा और उस में सुधार देखा गया.

शेयर बाजार भी 4 दिसंबर से पहले लगातार 4 दिन तक तेजी पर रहा. दूसरे बाकी भी बाजारों में मामूली गिरावट के बाद तेजी का ही रुख रहा. जानकारों के मुताबिक भारतीय बाजार में यह रुख वैश्विक स्तर पर शेयर बाजारों में तेजी के माहौल से आया.

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आंतरिक स्थितियों से प्रभावित होने के बजाय सूचकांक एक पैंडुलम की तरह नजर आया जिस की दोलन गति दुनिया के बाजारों में उत्पन्न हालात पर आधारित रही है. इन सब परिस्थितियों के बावजूद दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक बाजार में तेजी का माहौल रहा और सूचकांक मजबूती पर बंद हुआ. 

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