अखबारों में यह खबर सुर्खियों में है कि चालू वित्त वर्ष में सरकार बैंकिंग क्षेत्र में 50 हजार नौकरियां उपलब्ध कराएगी. खबर में कहा गया है कि ये भर्तियां मार्च 2014 से पहले की जानी हैं. इस से पहले भी खबर आई थी कि इस साल मार्च तक 63 हजार लोगों को बैंकों में नौकरियां मिलेंगी. इस खबर से लगता है कि सरकार को अचानक याद आया है कि बैंकिंग क्षेत्र कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है और इस कमी को दूर किया जाना जरूरी है. तेजी से बैंकों में इस साल सचमुच भर्तियां भी हुई हैं लेकिन आने वाले दिनों में फिर बड़े पैमाने पर भर्तियां होनी हैं. तर्क दिया जा रहा है कि इस वित्त वर्ष के अंत तक बैंकों को 8 हजार नई शाखाएं खोलनी हैं. ग्रामीण बैंकों की भी 2 हजार शाखाएं खुलनी हैं यानी मार्च तक देश में 10 हजार नई शाखाएं खुलनी हैं. बैंकिंग क्षेत्र में इस तरह की भर्तियां खुलने से बेरोजगारों को नौकरी मिलेगी लेकिन यह बाढ़ वाली स्थिति है.

सरकार को बैंकों की शाखाएं खोलनी और ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग की पहुंच बढ़ानी है तो पिछले 9 साल में यह सरकार क्या करती रही. अचानक उसे याद आई कि बैंकों की नई शाखाएं खोलनी हैं. सरकार की इस नीति से साबित होता है कि वह चुनावी वर्ष को भुनाने में जुट गई है और इस के लिए वह असंतुलित हो कर भी काम करने को तैयार है. यदि वह अपने पहले कार्यकाल में ही इस योजना को तैयार करती तो पिछले 9 साल में बेरोजगारी से परेशान रहे लोगों को भी राहत मिलती और आज उन्हें बैंकों में इस तरह की भर्ती खुली देख कर अपनी उम्र निकलने पर खूनी आंसू नहीं बहाने पड़ते. सिर्फ वोट के लोभ में उलटेसीधे निर्णय लेने से कभी लाभ नहीं होता है और इस सरकार को भी इस का खमियाजा भुगतना पड़ेगा. क्रमबद्ध तरीके से बैंक खुलते और उन में भर्तियां होतीं तो बेरोजगारों को भी लाभ मिलता और धीरेधीरे गांव तक बैंकिंग प्रक्रिया की पहुंच भी बनती लेकिन यहां तो बाढ़ वाली स्थिति पैदा हो गई है.

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