शिप्रा को 2 महीने हो गए बैंक के चक्कर काटते हुए. एक तो असमय पति का साथ छूट गया, ऊपर से बतौर नौमिनी उन का नाम दर्ज न होने की वजह से उन के बैंक अकाउंट में जमा रुपए और लौकर में रखे गहने निकालने के लिए कई तरह की औपचारिकताएं पूरी करतेकरते वे टूट सी गईं. गलती बैंक वालों की नहीं थी. शिप्रा के पति ने जरा सी समझदारी से काम लिया होता, तो इतनी जटिलताएं उत्पन्न नहीं होतीं. कुछ आसान सी औपचारिकताएं पूरी करते ही शिप्रा को उन के खाते में जमा रकम और लौकर खोल कर उस में रखा सामान निकालने की सुविधा मिल जाती.

अकसर ऐसी गलती बहुत से लोग करते हैं. शेयरों, म्यूचुअल फंड्स, फिक्स डिपौजिट्स या अन्य जमाओं के फौर्म भरते वक्त हम नौमिनेशन वाले कौलम को गैरजरूरी मानते हुए नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि फौर्म के इस कौलम को निवेश वित्तीय संस्थाओं ने आवश्यक न रख कर वैकल्पिक/ऐच्छिक श्रेणी में रखा है. नौमिनी न नियुक्त होने की सूरत में निवेशक की मृत्यु होने की स्थिति में जमा रकम को प्राप्त करना बेहद मुश्किल हो जाता है. कई सारी कानूनी औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद ही उसे प्राप्त किया जा सकता है. निवेशक ने नौमिनी नियुक्त कर रखा हो, तो बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा दिए गए फौर्म के साथ मृत्यु प्रमाणपत्र संलग्न कर के या आवेदन के साथ मृत्यु प्रमाणपत्र संलग्न कर के जमा कर देने पर आसानी से जमा रकम को प्राप्त किया जा सकता है. वहीं नौमिनी न होने की सूरत में वसीयतनामा, कानूनी उत्तराधिकारियों की प्रमाणीकृत सूची आदि देने की आवश्यकता पड़ जाती है.

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