वस्तु एवं सेवाकर विधेयक यानी जीएसटी के संसद में पारित होने के एक दिन बाद शेयर बाजार में जैसे हाहाकार मच गया और बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक एक झटके में 4 माह के न्यूनतम स्तर पर आ गया. जीएसटी विधेयक पर निवेशकों, खासकर विदेशी संस्थागत निवेशकों की चिंता के कारण बाजार 722 अंक तक लुढ़क गया. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में सूचकांक में एक दिन की यह दूसरी सब से बड़ी गिरावट है. वर्ष 2015 में शेयर बाजार में पहली बार इतनी ऊंची गिरावट दर्ज हुई है. इस दौरान नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी भी 10 साल की सर्वाधिक 3 प्रतिशत की गिरावट पर पहुंच गया. बताया जा रहा है कि जीएसटी विधेयक पर विपक्ष के बहिर्गमन, भूसंपदा (विनियोग और विकास) विधेयक तथा न्यूनतम वैकल्पिक कर यानी मैट पर बनी स्थिति से निवेशकों में निराशा का माहौल छा गया. मई की शुरुआत बाजार के लिए अच्छी नहीं रही. विश्व बैंक तथा अन्य संस्थाओं के अच्छी विकास दर रहने के अनुमान के बावजूद बाजार में निराशा का माहौल रहा. अप्रैल के आखिरी सप्ताह के दौरान मैट को ले कर उठे विवाद के कारण विदेशी निवेशक बिकवाली में जुट गए. तिमाही परिणामों के उम्मीद के अनुरूप नहीं रहने के कारण भी बाजार पर नकारात्मक असर देखने को मिला. इस से पहले 21 अप्रैल को बाजार में जम कर बिकवाली हुई और सूचकांक लुढ़क गया.

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एनजीओ की अराजकता की नाकेबंदी जरूरी

हाल में एक अच्छी खबर आई है कि सरकार ने 9 हजार गैर सरकारी संगठनों यानी एनजीओ का पंजीकरण रद्द कर दिया है. उन संगठनों पर आरोप है कि उन्होंने बारबार नोटिस दिए जाने के बाद भी 3 वर्ष पहले यानी 2009 से 2012 तक के कामकाज अथवा खर्चे का कोई ब्योरा सरकार को नहीं दिया. ये सब संगठन विदेशों से चंदा अर्जित करने वाले हैं. इस तरह के साढ़े 10 हजार संगठनों को सरकार ने नोटिस भेजा लेकिन शेष डेढ़ हजार के खिलाफ अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है. इसी तरह से डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने 21 हजार से अधिक एनजीओ को 2009 तक 3 साल का हिसाबकिताब नहीं देने पर नोटिस दिया था. ऐसा लगता है कि तब सबकुछ सुलझ गया होगा, इसलिए एनजीओ के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई. एनजीओ कुकुरमुत्तों की तरह फैले हुए हैं और लगातार इन की संख्या बढ़ रही है. सब एनजीओ चांदी काट रहे हैं. विदेशी सहायता वालों पर तो लगता है कि सरकार की कुछ नजर है भी लेकिन देश में विभिन्न मंत्रालयों द्वारा जनसेवा के लिए दिए जाने वाले पैसे को फर्जी एनजीओ और उन के लिए निधि मंजूर करने वाले बाबू मिल कर डकार रहे हैं.

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