निजी क्षेत्र के 3 बड़े बैंकों पर गैरकानूनी ढंग से काला धन रख कर उसे सफेद बनाने का आरोप एक स्टिंग औपरेशन में लगाया गया है. स्टिंग औपरेशन में बैंक काली करतूत में किस तरह से लिप्त हैं, इस का जोरदार ढंग से खुलासा हुआ है. जिस से ये तीनों बैंक भारत के स्विस बैंक बन गए हैं. 

इन में से एक बैंक कहता है कि उस पर बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं और उस ने रिजर्व बैंक के किसी नियम को नहीं तोड़ा है. उस ने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है. लेकिन असली बात यह है कि हर चोर पकड़े जाने पर इसी तरह की सफाई देता है. सोचिए कि दशकों से काम कर रहे कई सरकारी बैंक जस के तस पड़े हैं. वहां ईमानदारी है लेकिन जो कंपनियां मुश्किल से एकडेढ़ दशक पहले बैंकिंग क्षेत्र में उतरीं, उन की बल्लेबल्ले हो रही है. उलटेसीधे काम किए बिना इतनी ऊंचाई इतने कम समय में ईमानदारी से असंभव सी लगती है. खैर, स्टिंग औपरेशन ने सब को असलियत का दर्पण दिखा दिया है.

बैंकों से ऋण लेने वाले रघु भंडारी का कहना है कि उस ने एक बैंक से ऋण लिया था लेकिन वह बैंक के हाइड यानी अदृश्य चार्जेज भरतेभरते तंग आ गया और आखिरकार उस ने दूसरी जगह से कर्ज ले कर बैंक से 3 साल में मुक्ति पाई. इस दौरान उस का मूलधन सिर्फ कुछ ही हजार जमा हुआ था. ऐसे हजारों ग्राहक होंगे जो बैंकों से परेशान हैं. ऐसे बैंकों पर रिजर्व बैंक को बराबर नजर रखने की जरूरत है.

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