हमारे यहां जनप्रतिनिधियों और सरकारी विभागों को लगता है कि विकास कार्य खत्म हो चुके हैं, लोगों के लिए सुविधाएं जुटाने की जरूरत और ढांचागत विकास आवश्यक नहीं है. यह स्थिति दुविधा वाली है. कारण, विकास कार्य तो हुआ ही नहीं है, इसलिए खत्म होने की बात निराधार है. विकास के कार्य करें अथवा नहीं, या चुनावी वर्ष में ही देख लेंगे, इस तरह की अवधारणा ही हो सकती है जो हमारे सरकारी विभागों और जनप्रतिनिधियों को विकास के लिए आवंटित धन को इस्तेमाल करने से रोकती है. सरकार पैसा इसलिए देती है कि देश के हर हिस्से में लोगों को बुनियादी सुविधाएं दी जाएं, जनप्रतिनिधि और समाज कल्याण विभाग देश के हर हिस्से में विकास सुनिश्चित करें और विकास के लिए आवंटित पैसे का इस्तेमाल हो. आश्चर्य की बात है कि जिन्हें विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है वे सब उदासीन हो कर बैठे हैं. सांसद, विधायक लोक कल्याण के लिए आवंटित पैसे का इस्तेमाल नहीं करते हैं. अगर वे कुछ पैसों का इस्तेमाल करते हैं तो अपने लोगों के हितों को ध्यान में रख कर ही करते हैं. सरकारी विभागों का भी यही हाल है. सभी मंत्रालयों और विभागों को बजट में आवंटित राशि का इस्तेमाल करने का सरकारी फरमान हाल में इसीलिए जारी हुआ है. हालत यह है कि सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने इस वर्ष अप्रैल से जुलाई की तिमाही में आवंटित बजट का सामाजिक व ढांचागत विकास कार्य के लिए सिर्फ 34 प्रतिशत ही इस्तेमाल किया है.

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