भारत के लघु और म?ोले टिंबर कारोबारियों के लिए यूरोपीय देश सोने की मुरगी की तरह हैं. प्रधानमंत्री की जरमनी यात्रा में यूरोपीय देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के तहत मुक्त व्यापार सम?ौते के एजेंडे में लकड़ी के कारोबार को सर्वाधिक लाभ होने की उम्मीद थी लेकिन 3 मार्च को यूरोपीय क्षेत्र के सभी 27 देशों ने इमारती लकड़ी के संबंध में नया कानून लागू किया है जिस के तहत अवैध तरीके से काटी गई लकड़ी से बने सामान के आयात की इजाजत नहीं होगी.

अब जो सामान यूरोपीय देशों को जाएगा उस के साथ वैधता के प्रमाण की जरूरत पड़ेगी. भारतीय कारोबारियों के लिए इस प्रामाणिकता के साथ अपना माल बेचना कठिन हो जाएगा. दरअसल, जो लकड़ी का सामान हमारे यहां से निर्यात किया जाता है उस का बड़ा हिस्सा लघु और म?ोले यानी असंगठित क्षेत्र के कारोबारियों द्वारा तैयार किया जाता है. इन कारोबारियों के लिए यूरोपीय मानकों के अनुसार प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना आसान नहीं होगा.

समस्या के समाधान के लिए भारतीय हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद ने यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों से बात की. अब तक समस्या का समाधान नहीं निकला है लेकिन उम्मीद है कि समस्या जल्द ही सुल?ा जाएगी और बीच का रास्ता निकाला जाएगा.

बहरहाल, यूरोपीय संघ का यह कदम वनों की सुरक्षा व पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल कहा जा सकता है. वन चौकियों व अन्य संबंधित स्थलों पर जारी भ्रष्टाचार के कारण अवैध ढंग से कटी लकड़ी हस्तशिल्पियों तक पहुंच रही है. जंगल बचेंगे तो पर्यावरण बचेगा और कारोबार वन दोहन के एक मानक के साथ जारी रहेगा.

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