सामान्य आदमी के लिए यह हैरान कर देने वाली खबर है कि जिन राजनीतिक दलों को उस ने राष्ट्र की उन्नति के लिए उन की नीतियों पर भरोसा किया उन का मकसद आम आदमी की तरक्की नहीं बल्कि सत्ता का सुख भोगना है. इन दलों के बीच सत्ता हासिल करना बड़ी प्रतिद्वंद्विता बन गई है और सामान्य आदमी के भरोसे ही लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है इसलिए चुनाव आते ही सभी दल मतदाताओं को लुभाने, भरमाने अथवा गुमराह करने के लिए हथकंडा अपनाना शुरू कर देते हैं. आगामी

चुनाव में उतरने वाले दलों ने सिर्फ विज्ञापन दे कर अपनी छवि का दिग्दर्शन कराने के लिए 2 हजार करोड़ रुपए से अधिक बाजार में झोंक दिए हैं. इन में सब से ज्यादा कांगे्रस और भाजपा 500-500 हजार करोड़ रुपए विज्ञापन बाजार में फेंक रही हैं. शेष 1 हजार करोड़ रुपए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल (यू), तेलुगु देशम पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम, अखिल भारतीय अन्ना द्रमुक जैसे क्षेत्रीय दल खर्च कर रहे हैं. इस का बड़ा हिस्सा टीवी चैनलों के पास जा रहा है. अखबारों को भी खासे विज्ञापन मिल रहे हैं लेकिन पत्रिकाओं को कम विज्ञापन मिल रहे हैं.

विज्ञापन मुहिम में मोबाइल कंपनियों को शामिल किया जा रहा है. होर्डिंग्स आदि पर भी काफी पैसा खर्च हो रहा है. इस के लिए मैडिसन वर्ड, रेडीफ्यूजन, गे्र ग्रुप जैसी कई एजेंसियां दिनरात एक किए हैं. विज्ञापन तैयार करने के लिए विशेष टीम जुटी हैं जो जानती हैं कि उन्हें किस आइडिया से लोगों को आकर्षित करना है.

अनुमान लगाया जा सकता है जिस सत्ता के लिए इस तरह की मारामारी हो रही हो उसे हासिल करने के बाद स्वाभाविक रूप से पैसा वसूल पहले होगा और जनता को दिखाए सपने दिवास्वप्न ही बने रहेंगे.?

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