फिल्म ‘संता बंता’ की कहानी फिजी में रह रहे भारतीय उच्चायुक्त शंकर (अयूब खान) के अपहरण से शुरू होती है. शंकर का पता लगाने के लिए भारत में रॉ के अधिकारी हनुमंत सिंह (टीनू आनंद) अपने सहयोगी (विजय राज) से कहते हैं कि वह मशहूर भारतीय जासूसों संता और बंता का पता लगाकर उन्हे इस मिशन पर फिजी भेजे. पर हनुमंत का सहयोगी दो नकली जासूसों संतेश्वर सिंह उर्फ संटा (बोमन ईरानी) और बंटेश्वर सिंह उर्फ बंटा (वीर दास) को भेज देता है. फिजी में संता व बंता की मदद के लिए रॉ एजेंट अकबर (संजय मिश्रा) हैं. संटा बंटा मजाक करते रहते हैं. पर जासूसी की एबीसीडी नहीं पता. जिसकी वजह से वह बार बार फंसते रहते हैं.
इस बीच यह पता चलता है कि अपहरणकर्ता सेर रॉ अधिकारी का सहयोगी विजय राज भी मिला हुआ है. पर अंत में शंकर को छुड़ा लिया जाता है. पता चलता है कि शंकर के अपहरण के पीछे शंकर के खास दोस्त व व्यापारी सुल्तान (राम कपूर) और शंकर की पत्नी करीना (नेहा धूपिया) का ही हाथ था. यह दोनो मारे भी जाते हैं.
बेसिर पैर की कहानी, घटिया पटकथा, घटिया जोक्स व घटिया निर्देशन वाली फिल्म ‘‘संता बंता प्रा.लिमिटेड’’ हंसाने की बजाय बोर करती है. फिल्म में जानी लीवर, बृजेश हीरजी व विजय पाटकर के किरदार जबरन ठूंसे गए हैं. इनके पात्रों का कहानी से कोई संबंध ही नही है. आम इंसानों के बीच संता सिंह और बंता सिंह के जोक्स काफी मशहूर हैं. यह दो पात्र मशहूर हैं. मगर इन्हीं पात्रो को लेकर कोई निर्देशक इतनी घटिया फिल्म भी बना सकता है, इसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी. फिल्म की कहानी, संवाद या पात्र किसी भी तरह से दर्शकों के साथ नहीं जुड़ पाते हैं. निर्देशक ने हास्य के कई महारथी कलाकारों को अपनी इस फिल्म से जोड़ा, मगर वह इनका उपयोग करने में बुरी तरह से असफल रहे.