1959 में नेवी अफसर के एम नानावटी के साथ हुए हादसे से प्रेरित फिल्म ‘‘रूस्तम’’ में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के साथ साथ इस बात की ओर भी इशारा किया गया है कि एक ईमानदार फौजी देश की रक्षा करते करते अपने परिवार की रक्षा नहीं कर पाता है. फिल्म की लंबाई अधिक होने के बावजूद फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधकर रखती है. फिल्म में नाटकीयता काफी है.

कहानी की शुरूआत आईएनएस मैसूर पर तैनात नेवी कमांडर रूस्तम पावरी (अक्षय कुमार) से होती है, जिनका यह जलयान छह माह से पहले ही मुंबई वापस लौट आता है. रूस्तम की गिनती एक देशभक्त व ईमानदार फौजी के रूप मेंहोती है. रूस्तम अपने घर पहुंचते हैं. घर पर उनकी पत्नी सिंधिया पावरी (ईलियाना डिक्रूजा) मौजूद नहीं होती हैं. घर की नौकरानी जमनाबाई (उषा नाडकर्णी) से पता चलता है कि सिंधिया पावरी दो दिन से घर से बाहर है.

रूस्तम को बेडरूम में फूलों के गुच्छे के साथ पत्र मिलता है, जिससे रूस्तम के मन में कुछ शंका पैदा होती है और वह अलमारी खोलता है, उसे कई प्रेम पत्र मिलते हैं. वह प्रेम पत्र पढ़ना शुरू करता है, जिनसे पता चलता है कि वह पत्र विक्रम मखीजा (अर्जन बाजवा) ने रूस्तम की पत्नी सिंधया पावरी के नाम लिखे हैं. रूस्तम, विक्रम के घर पर फोन लगाते हैं, फोन विक्रम का नौकर उठाता है और कहता है कि विक्रम घर पर नहीं है. रूस्तम अपनी गाड़ी लेकर विक्रम के घर के सामने पहुंचता है, तो वह बालकनी में अपनी पत्नी सिंधिया और विक्रम मखीजा को देखता है.

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