2010 की सफलतम कोरियन फिल्म ‘‘द मैन फ्राम नो व्हेअर’’ का घटिया संस्करण है निशिकांत कामत निर्देशित फिल्म ‘‘राकी हैंडसम’’. फिल्म देखने जाने से कुछ घंटे पहले फिल्म को लेकर निशिकांत कामत से फोन पर लंबी चौड़ी बात हुई थी. उनसे बात करने के बाद फिल्म को लेकर जो उम्मीदें बंधी थी, फिल्म ठीक उसके विपरीत निकली. निशिकांत कामत का यह कहना सही है कि ‘राकी हैंडसम’ में अनूठे एक्शन सीन हैं, मगर उनका यह दावा कोरी बकवास लगती है कि फिल्म में आंखे भर आने वाला इमोशन है. दूसरी बात महज अच्छे एक्शन सीन के लिए अधकचरी कहानी परोसना सही नहीं ठहराया जा सकता. इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी रितेष जोशी की पटकथा व फिल्म की एडीटिंग है. तभी तो फिल्म की कहानी हिचकोले लेते हुए आगे बढ़ती रहती है. यह एक दिमाग शून्य फिल्म है. फिल्म की कहानी कहीं से भी दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती.
फिल्म ‘‘राकी हैंडसम’’ की शुरूआत होती है एकांत व शांत रहने वाले कबीर (जान अब्राहम) द्वारा मछली व फूल खरीदने से. फूल सूंघते ही वह अतीत में खो जाता है और कहानी सेशेल्स पहुंच जाती है. जहां कबीर अपनी खूबसूरत पत्नी रूकशिदा (श्रुति हासन) के संग खुशहाल जिंदगी बिता रहा है. पर चंद मिनटों मे कहानी फिर से वर्तमान में गोवा के एक गांव पहुंच जाती है. आठ साल की छोटी बच्ची नाओमी (बेबी दिया चालवाड़), कबीर के पान शाप के सामने है. दोनों के बीच कुछ बातचीत होती है. पता चलता है कि नाओमी, कबीर की पड़ोसन है और वह अपनी मां ऐना (नाथालिया कौर) के साथ रहती है. नाओमी की मां को ड्रग्स की लत है. नाओमी उसे हैंडसम बुलाती है और बताती है कि उसके स्कूल के दोस्त कहते हैं कि कबीर, बहुत बड़ा अपराध करने के बाद छिपकर रह रहा है. मगर नाओमी को अपने दोस्तों की इस बात पर यकीन नहीं है.