इस फिल्म में न तो हीरोहीरोइन एकदूसरे के लिए मरमिटने की कसमें खाते हैं, न ही एकदूसरे से लिपटतेचिपटते हैं. इस प्रेम कहानी में नायिका के प्रति नायक की दीवानगी है, पागलपन है. निर्देशक आनंद एल राय ने बचपन के इस प्यार को बहुत खूबसूरती से आगे बढ़ते दिखाया है. ब्लौकबस्टर गीत ‘कोलावेरी डी’ से शोहरत हासिल करने वाला दक्षिण भारत का स्टार धनुष इस फिल्म का हीरो है और सोनम कपूर ने हीरोइन की भूमिका निभाई है.
धनुष चेहरेमोहरे से हीरो बिलकुल नहीं लगता. रफटफ चेहरे वाला, दाढ़ी बढ़ी हुई, उलटेसीधे कपड़े पहने जब वह नायिका का पीछा करता है तो लगता है जैसे कोई फटीचर किसी सुंदरी का पीछा कर रहा हो. जब वह नायिका से अपने प्यार का इजहार करता है तो दर्शकों के चेहरों पर हंसी आ जाती है.यही फिल्म की खासीयत है. निर्देशक ने बनारस की गलियों में प्यार का जो रस उड़ेला है उसे देख मजा आने लगता है. इस के अलावा फिल्म की कई और खासीयतें भी हैं.
फिल्म की कहानी शुरू होती है नायक कुंदन (धनुष) और नायिका जोया (सोनम कपूर) के बचपन से. कुंदन एक पुजारी का बेटा है और जोया मुसलिम है. कुंदन बचपन से ही जोया से प्यार करता है जबकि बिंदिया (स्वरा भास्कर) कुंदन को चाहती है. जोया के घर वाले उसे आगे पढ़ने के लिए अलीगढ़ भेज देते हैं. इन 8 सालों में जोया कालेज पहुंच जाती है. उस की जिंदगी में छात्र यूनियन का नेता जसजीत उर्फ अकरम जैदी (अभय देओल) आ जाता है.
8 साल बाद जब जोया वापस घर लौटती है तो वह कुंदन को नहीं पहचान पाती. जोया उसे बताती है कि वह उस से प्यार नहीं करती बल्कि कालेज में साथ पढ़ने वाले अकरम जैदी से प्यार करती है. कुंदन उन दोनों की शादी करवाने में सहयोग करता है. लेकिन ज्यों ही अकरम का भेद खुलता है कि वह मुसलमान नहीं हिंदू है, शादी नहीं हो पाती. उसे अधमरा कर फेंक दिया जाता है. बाद में वह मर जाता है.