जब भी आप ‘मुंबई मिरर’ जैसी फिल्म देखेंगे उस में आप को मुंबई की वही तसवीर दिखाई देगी जो अब तक आप सैकड़ों बार देख चुके हैं. एक हीरो टाइप इंस्पैक्टर होगा, एक ड्रग बेचने वाला माफिया होगा. भ्रष्ट पुलिस अफसर होगा जो माफिया से मिला होगा, गोलियां चलती दिखाई देंगी. रेप, मारधाड़ सबकुछ होगा. इस फिल्म में यही सबकुछ घिसापिटा है. इसीलिए इसे न ही देखें तो अच्छा है.

कहानी एक पुलिस इंस्पैक्टर अभिजीत पाटिल (सचिन जोशी) और एक ड्रग माफिया शेट्टी (प्रकाश राज) के टकराव की है. बारबार दोनों आपस में टकराते हैं. फिल्म की यह कहानी घिसीपिटी है. पटकथा भी कमजोर है. फिल्म की सब से बड़ी कमजोरी नायक सचिन जोशी है. उस ने फिल्म ‘सिंघम’ के अजय देवगन की नकल करने की असफल कोशिश  की है. खलनायक प्रकाश राज ने सिवा अपनी आंखों की पुतलियां फैलाने के कुछ भी नहीं किया है. फिल्म का निर्देशन बेकार है. ‘जो उखाड़ना है उखाड़ लेना’, ‘कौन किस की बैंड बजाता है’ इस तरह के संवाद वाहियात नहीं तो और क्या हैं. फिल्म में 2-2 आइटम सौंग हैं जो उत्तेजक हैं. महेश मांजरेकर और आदित्य पंचोली जैसे पुराने कलाकारों से?भी निर्देशक बढि़या काम नहीं ले सका है. फिल्म का गीतसंगीत बेकार है. छायांकन ठीकठाक है.

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