संजय दत्त के जेल जाने के बाद रिलीज हुई उन की पहली फिल्म ‘पुलिसगीरी’ तमिल फिल्म ‘सामी’ की रीमेक है. फिल्म के निर्माता ने फिल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी ‘सामी’ के ही निर्देशक के एस रविकुमार को सौंपी. ‘पुलिसगीरी’ में संजय दत्त की गांधीगीरी बिलकुल भी नहीं है, उलटे गुंडों से गुंडागीरी करते दिखाया गया है. चूंकि फिल्म तमिल की रीमेक है, निर्देशक भी वही है इसलिए इस में नयापन ढूंढ़ने की कोशिश करना बेमानी है.

फिल्म का नायक डीसीपी रुद्र (संजय दत्त) जांबाज है. शहर में एक राजनीतिबाज बनाम गुंडे नागोरी (प्रकाशराज) का आतंक है. डीसीपी रुद्र शहर के लोगों को नागोरी के आतंक से मुक्त कराना चाहता है. रुद्र की बहादुरी को देख कर सहर (प्राची देसाई) उसे चाहने लगती है. डीसीपी रुद्र न सिर्फ नागोरी के गुंडों की फौज को खत्म करता है, नागोरी को मार कर शहरवासियों को उस के आतंक से बचाता भी है.

फिल्म की यह कहानी काफी घिसीपिटी है. पूरी फिल्म में संजय दत्त छाया रहा है. लगता है जेल जाने के बाद संजय दत्त को इस फिल्म के जरिए भुनाने की कोशिश की जा रही है. इस फिल्म के मुंबई में हुए प्रीमियर शो के दौरान संजय दत्त की पत्नी मान्यता ने दर्शकों से संजय दत्त की इस फिल्म को देखने की अपील भी की. फिल्म सी ग्रेड की लगती है. निर्देशक ने पूरा ध्यान संजय दत्त के ऐक्शन दृश्यों पर ही केंद्रित किया है. ऐसे दृश्य देख कर फ्रंटबैंचर्स खूब तालियां बजाएंगे. प्राची देसाई ने 1-2 गानों में संजय दत्त के साथ सिर्फ ठुमके ही लगाए हैं. राजपाल यादव हंसाता कम है, खिझाता ज्यादा है. फिल्म का निर्देशन घिसापिटा है. गीतसंगीत कुछ अच्छा है.

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