फिल्म ‘या रब’ आतंकवाद का चेहरा दिखाती है. दुनिया भर में आतंकवाद को फैलाने वाले लोग कौन हैं? जेहादियों को तैयार कर पूरी दुनिया में कौन खूनखराबा करा रहा है? इस का परदाफाश इस फिल्म में किया गया है. इस से पहले भी कई फिल्मों में आतंकवाद का सही चेहरा दिखाने की कोशिश की गई है परंतु ‘या रब’ में सीधेसीधे इस का जिम्मेदार धर्म के रहनुमाओं को ठहराया गया है. धर्म के ठेकेदार मुल्लामौलवी अपना उल्लू सीधा करने के लिए भोलेभाले निर्दोष लोगों को धर्म की बातों में उलझा कर उन्हें जेहाद के लिए तैयार करते हैं.

मुल्ला लोग निर्दोषों को जन्नत में हूरें मिलने और खुदा के लिए अपनी जान देने पुण्य मिलने की बातें कह कर गुमराह करते हैं और इसलाम धर्म का बेजा फायदा उठाते हैं. निर्देशक हसनैन हैदराबादवाला ने अपनी बात को असरदायक ढंग से कहने की कोशिश जरूर की है परंतु पूरी फिल्म लफ्फाजी बन कर रह गई है. फिल्म की शुरुआत में ही साफ हो जाता है कि आगे क्या होने वाला है.

फिल्म की कहानी एक मौलाना जिलानी (अखिलेंद्र मिश्रा) पर केंद्रित है, जो युवाओं को धर्म के नाम पर उकसाता रहता है और उन्हें खूनखराबा करने के लिए भड़काता है. उस की एक बेटी अमरीन (अर्जुमन मुगल) है जिस की शादी इमरान (विक्रम सिंह) से हुई है. जिलानी एक साजिश के तहत एक मौल में बम विस्फोट कराता है. इस विस्फोट में अमरीन गंभीर रूप से घायल हो जाती है.

मामले की तहकीकात ऐंटी टैरेरिस्ट अफसर रणविजय (एजाज खान) करता है. मौलाना जिलानी इसलिए परेशान है क्योंकि अगर अमरीन बच जाती है तो वह पुलिस को बयान दे देगी कि विस्फोट करने वाला कौन है. उस ने विस्फोट से पहले उसे देखा था. वह मौलाना जिलानी का ही खास आदमी था.

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