जेड प्लस

‘जेड प्लस’ आम आदमी (केजरीवाल जैसा नहीं) पर बनी फिल्म है, जिसे प्रधानमंत्री के आदेश पर ‘जेड प्लस’ सुरक्षा दी गई है. आम आदमी तो केजरीवाल भी था, मगर चुनाव जीतने और दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वह खास आदमी बन गया तो उसे भी जेड प्लस सुरक्षा औफर की गई थी. इस फिल्म का हीरो सूटेडबूटेड नहीं है. वह टायरों में पंचर लगाने का काम करता है. उस के टूटेफूटे घर में टौयलेट तक नहीं है. (केजरीवाल जैसे आम आदमी के पास तो 5-6 कमरों का सुसज्जित मकान तो था.) इस फिल्म का हीरो जब शौच के लिए खुले में जाता है और सुरक्षा में तैनात कमांडो भी उस के पीछेपीछे हाथों में लोटा उठाए खुले में जाते हैं तो बरबस होंठों पर हंसी आ जाती है.

जेड प्लस सिक्योरिटी मिलने के बाद एक आम आदमी की जिंदगी में किस तरह के बदलाव आते हैं, फिल्म में इसे गहराई से दिखाया गया है. निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी, जिस ने ‘चाणक्य’ जैसा धारावाहिक और बंटवारे पर ‘पिंजर’ जैसी मर्मस्पर्शी फिल्म बनाई, ने ‘जेड प्लस’ में सरकारी कामकाज पर कटाक्ष करने के साथसाथ देश के प्रधानमंत्री पर भी कटाक्ष किया है. ‘जेड प्लस’ में प्रधानमंत्री के किरदार को पूरी तरह अंधविश्वासी दिखाया गया है. वह अपनी कुरसी बचाए रखने के लिए दरगाह पर मत्था टेकने जाता है और पीपल वाले पीर के नाम का तावीज अपने गले में पहनता है. वैसे आप को बता दें कि हमारे देश के प्रधानमंत्री भी कम अंधविश्वासी नहीं रहे हैं. वे भी जगहजगह मंदिरों में मत्था टेकने पहुंच जाते हैं, कभी पशुपति मंदिर में तो कभी और कहीं. निर्देशक ने इस फिल्म में दिखाए गए प्रधानमंत्री के किरदार का मेकअप भी नरेंद्र मोदी से मिलताजुलता किया है. यह सब दिखा कर उस ने प्रधानमंत्री तक पर व्यंग्य कर डाला है.

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