रोमांटिक कॉमेडी फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ का अंत आम बॉलीवुड मसाला फिल्मों से एकदम अलग है, इसके अलावा इस फिल्म में कुछ भी नवीनता नहीं है. यह फिल्म बचपन की दोस्ती व एकतरफा प्यार की बात करती है.

फिल्म का नायक, जो कि लेखक और आधुनिक देवदास है, वह एक ही बात का रोना रोता रहता है कि ‘‘प्यार करना सब सिखाते हैं. पर प्यार को भुलाएं कैसे यह कोई नहीं सिखाता.’’

फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ की कहानी लेखक अभिमन्यू (आयुष्मान खुराना)के इर्द गिर्द घूमती है. अभिमन्यू मुंबई में प्रतिष्ठित लेखक है. उसके कई उपन्यास काफी चर्चा बटोर चुके हैं, पर उसे लेखक के तौर पर व सम्मान नहीं मिला, जिसकी वह चाह रखता है. अब तक वह ‘चुड़ैल की चोली’ जैसे सी ग्रेड उपन्यास ही लिखता रहा है. पिछले दस वर्ष से वह कुछ भी अच्छा नही लिख पाया.

अब वह जिस उपन्यास को लिख रहा है, उससे प्रकाशक संतुष्ट नहीं है. इस बात को दस साल हो जाते हैं. इसलिए वह पुराने जमाने वाली प्रेम कहानी लिखना शुरू करता है. पर एक दिन उसके माता पिता उसे बहाने से कोलकाता घर पर बुलाते हैं. उनका मकसद अभिमन्यू की शादी करानी है, जो कि अपने पुराने प्यार को अब तक भूला नहीं है. लेकिन घर पर माता पिता द्वारा आयोजित पार्टी वगैरह से तंग आकर वह कोलकाता में ही होटल में रहने चला जाता है, जहां वह चैन से अपना नया उपन्यास लिख सके.

अभिमन्यू के इस उपन्यास की कड़ियां कहीं न कहीं उसकी अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी हुई हैं. अब कहानी अतीत व वर्तमान के बीच हिचकोले लेते हुए चलती रहती है. कहानी खुलती है कि कोलकाता में अभिमन्यू के मकान के पड़ोस वाले मकान में बिंदू रहती थी. दोनों बचपन के दोस्त हैं. उनकी यह दोस्ती काफी आगे बढ़ चुकी है. एक दिन एक कार दुर्घटना में बिंदू की मां की मौत हो जाती है, पर बिंदू के पिता बच जाते हैं. जबकि कार बिंदू के पिता ही चला रहे थे. इसी के चलते बिंदू अपने पिता को दोषी मानती है.

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