निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने अपनी फिल्म ‘बुलेट राजा’ में गोलियों की धांयधांय तो खूब कराई है परंतु निशाना लगाने में वे बारबार चूकते नजर आए हैं. फिल्म को बिकाऊ बनाने के लिए उन्होंने इस में मसाले डाले हैं. अगर हम उन की पिछली फिल्मों ‘पान सिंह तोमर’ और ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर’ पर नजर डालें तो पाएंगे कि उन फिल्मों में एक कलात्मकता थी, बाकायदा कहानी थी, मगर इस फिल्म में सिर्फ गोलियों की गूंज के अलावा कुछ नहीं है.

फिल्म की पृष्ठभूमि में तथाकथित उत्तर प्रदेश की राजनीति है जो पूरी तरह बनावटी है. राजा मिश्रा (सैफ अली खान) की लखनऊ शहर में रुद्र (जिमी शेरगिल) से मुलाकात होती है, जो एक कूरियर कंपनी में नौकरी करता है. दोनों में दोस्ती हो जाती है. एक दिन रुद्र के घर उस के चाचा परशुराम (शरत सक्सेना) के परिवार वालों पर एक बाहुबली अखंडवीर के आदमी हमला कर देते हैं. राजा और रुद्र मोरचा संभालते हैं. परशुराम उन्हें जेल से बाहर निकलवाता है. दोनों परशुराम की सेना में शामिल हो जाते हैं. परशुराम के साथ बरसों से रह रहा लल्लन (चंकी पांडे) धोखे से परशुराम की हत्या कर देता है. अब राजा और रुद्र लल्लन को मार डालते हैं. दोनों एक पावरफुल मिनिस्टर रामबाबू (राज बब्बर) से जुड़ जाते हैं और एक फाइनैंसर बजाज (गुलशन ग्रोवर) को मार डालते हैं.

यहां उन की मुलाकात एक युवती मिताली (सोनाक्षी सिन्हा) से होती है. राजा उस से प्यार कर बैठता है और उस के साथ कोलकाता चला जाता है. इधर, एक नामी गुंडा सुमेर यादव (रवि किशन) रुद्र को मार डालता है. पता लगने पर राजा वापस लखनऊ लौटता है. शहर में उस का खौफ पैदा हो जाता है. राजा सुमेर यादव को मार कर बदला लेता है. अब राजनीतिक दबाव में आ कर रामबाबू इंस्पैक्टर अरुण सिंह (विद्युत जामवाल) को राजा को मारने के लिए भेजता है. वह राजा को घेर कर उस पर गोलियां चलाता है और उसे मरा जान कर चला जाता है. उधर, राजा फिर से उठ कर खड़ा होता है.

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