एक प्रतिष्ठित अंगरेजी पाक्षिक पत्रिका के ‘पाठकों की समस्या’ स्तंभ में एक गंभीर समस्या पढ़ने को मिली. कालेज के एक छात्र ने लिखा था, ‘मैं अपने मातापिता का बहुत सम्मान करता हूं. उन्हें अपना आदर्श मान कर उन्हीं की तरह बनना चाहता हूं. लेकिन पिछले दिनों मैं यह देख कर हैरान रह गया कि मेरी मां पड़ोस के एक व्यक्ति से प्यार की पींगें बढ़ा रही हैं. मैं ने अपनी आंखों से उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देखा है. बस, तब से ही इच्छा होती है कि उस पड़ोसी की हत्या कर डालूं.’
मन की गुत्थियों को व्यक्त करते हुए छात्र का कहना था कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस रहस्य को मैं किस तरह जाहिर करूं. यदि पिता को बताता हूं तो परिवार के बरबाद होने का खतरा नजर आता है और मां को कहता हूं तो डर लगता है कि शर्म से वे आत्महत्या न कर लें.
ऐसी मनोदशा में कुछ दुर्घटना होने की संभावना है. मातापिता के दुराचरण को बच्चे जानने लगे, इस से अधिक त्रासद स्थिति और कुछ नहीं हो सकती. इस तरह की घटनाओं पर बड़े तो अपनेअपने तरीकों से प्रतिक्रियाएं जाहिर कर मन की भड़ास निकाल लेते हैं, किंतु बच्चे न विरोध के स्वर में बोल पाते हैं और न ही मातापिता का पक्ष ले सकते हैं.
पारंपरिक भारतीय परिवार में इस तरह का आचरण और भी असहनीय है. कई बार मन की बात कहने का उन का तरीका उपरोक्त छात्र की तरह होता है, बहुत बार उन्हें मानसिक आघात सहना पड़ता है. इस के अलावा बच्चों का मातापिता के प्रति विश्वास टूट जाता है. इस विश्वास के टूटने से बच्चे अकेले पड़ जाते हैं तथा इस पीड़ा को वे किसी दूसरे के साथ बांट भी नहीं सकते.