हर साल मईजून में छात्रों के दिलों की धड़कनें तब तेज होने लगती हैं जब 10वीं और 12वीं यानी बोर्ड परीक्षा के नतीजे निकलने को होते हैं. सभी छात्रों की सोच कुछ खास बिंदुओं पर अटकी होती है. परीक्षा परिणाम के नतीजे छात्र अब मोबाइल के जरिए एस.एम.एस. कर के पता कर सकते हैं. एक छात्रा ने जब अपने मोबाइल से रिजल्ट जानने के लिए अपना रोल नंबर एस.एम.एस. किया तो उत्तर मिला कि वह फेल है. उस खबर से वह छात्रा इतनी दुखी हुई कि उस ने आत्महत्या कर ली. बाद में पता चला कि वह पास थी. दिल्ली के कैंट इलाके में रहने वाली 17 वर्षीय शालिनी ने 12वीं में फेल होने के बाद खुद को अपने पिता की बंदूक से गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

दिल्ली की साक्षी ने इस आशंका में कि वह फेल हो जाएगी, परीक्षा के नतीजे आने से पहले ही आत्महत्या कर ली. दिल्ली की 13 वर्षीय पायल स्कूल से अंगरेजी का पेपर दे कर आई तो बहुत तनाव में थी. उसे लग रहा था कि उस का पेपर ठीक नहीं हुआ है. वह स्कूल से आ कर सीधे अपने कमरे में चली गई. दोपहर को जब उस की मां खाने के लिए उसे बुलाने गईं तो देखा कि पायल ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा ली है.

आखिर क्यों हो रहा है ऐसा

कौन है छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार  क्या किया जाना चाहिए यह सब रोकने के लिए

कारण

अगर कारणों की तह में झांकें तो सब से पहले नजरें देश की शिक्षा प्रणाली पर जा कर ठहर जाती हैं. हर कक्षा में पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम बच्चे की उम्र और बौद्धिक विकास से अधिक है. इस का अंदाजा बच्चों के भारीभरकम स्कूल बैगों को देख कर लगाया जा सकता है. स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में किताबी हिस्सा अधिक अभ्यास कम होता है जिस कारण बच्चों को विषय कम समझ में आता है और उन्हें रटना अधिक पड़ता है. नतीजतन, परीक्षा नजदीक आते ही बच्चा खुद पर एक दबाव महसूस करता है. वह पढ़ता तो सबकुछ है पर उसे लगता है कि जितना याद किया है उसे भूल जाएगा.

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