अब तक रोहित हमारे वार्त्तालाप में भाग नहीं ले रहा था परंतु इस विषय पर वह चुप न रह सका.
‘आंटी, मैं तो कहता हूं कि नौकरी की ऐसी क्या जरूरत है? मां के बिना मोनू भी आएदिन बीमार हो जाता है. कभी आया नहीं आती तो घर में बिना बात के तनाव हो जाता है कि कौन छुट्टी ले.’
‘मेरी मम्मी संभाल लेती हैं. फिर क्यों मेरी नौकरी के पीछे पड़े हो,’ रीना चिढ़ कर बोली.
मैं इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थी पर मकान देने के लिए ‘हां’ कह चुकी थी, इसलिए विषय बदलना ही उचित समझा, वैसे भी यह उन का निजी मामला था. अत: उस दिन तो यह बात आईगई हो गई, किंतु मुझे ऐसी उम्मीद भी नहीं थी कि किराएदार के रूप में मुझे हर 10-15 दिन में इस सीरियल का ऐसा एपिसोड देखना पड़ेगा जो हर बार रिपीट टैलीकास्ट होता था.
‘ट्रिन...ट्रिन...’ घंटी की आवाज सुन कर मैं विचारतंद्रा से बाहर आई, कौन हो सकता है? रीना की मम्मी...परंतु यह तो इस सीरियल के किसी एपिसोड में नहीं घटा था यानी इस से पहले तो ऐसा कुछ नहीं हुआ था. इस से पहले तो रीना के जाने के बाद उस की मम्मी मोनू को ‘प्ले स्कूल’ में छोड़ कर घर को व्यवस्थित करतीं. मोनू को ले कर आतीं. शाम तक मोनू का मन बहलातीं और रीना के आने के बाद उसे चाय पिला कर, रात को सब्जियां बना कर अपने घर चली जातीं.
रोहित के आने के बाद के शीतयुद्ध का आभास भी मुझे हो जाता था क्योंकि यदाकदा चुनिंदा वाक्य, वह भी ठंडी आवाज में ही सुनाई पड़ते. पर आज, देखती हूं कौन आया है? अपनेआप से कहती हुई मैं दरवाजे की ओर बढ़ी. मैजिक आई से देखा तो रीना की मम्मी ही खड़ी थीं. दरवाजा खोला.