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‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ मम्मी ने जवाब दिया.

‘‘ये लो, आप की मेहमान है और आप ने पूछा ही नहीं. कोई जवान बेटे के घर में किसी की जवान बेटी को ऐसे कैसे रख सकता है? परदेदारी भी कोई चीज है इसलाम में,’’ मिसेज सिद्दीकी की कुंठा को जबान मिल गई.

‘‘नहीं, किसी के पर्सनल मामले में सवाल पूछना तहजीब के खिलाफ है. जहां तक परदेदारी की बात है, तो बदलते जमाने के साथ अपनी सोच को भी खुला रखना चाहिए. इसलाम में गैरों से परदे का हुक्म दिया गया है, अपनों से नहीं. बाबरा तो अर्शी की तरह ही है अनीस के लिए.’’ मम्मी का टका सा जवाब सुन कर मिसेज सिद्दीकी बुरा सा मुंह बना कर बाबरा की नाप लेने लगीं.

2 दिनों बाद उन का फोन आया, ‘‘कपड़े सिल गए हैं. आप आ कर फिटिंग देख लीजिए.’’

मम्मी बाबरा को ले कर उन के घर पहुंचीं तो बाबरा ने मिसेज सिद्दीकी के सामने ही टीशर्ट उतार कर कुरता पहन लिया. मिसेज सिद्दीकी शर्म से गड़ गईं, ‘‘हाय रे, यह तो बड़ी बेशर्म और बेबाक है.’’ इतने दिनों में बाबरा हिंदुस्तानी हावभाव समझने लगी थी.

‘‘आप भी तो औरत हैं, आप से कैसी शर्म?’’ बाबरा हंस कर अंगरेजी में बोली.

‘‘फिर भी लाजशर्म तो औरत का गहना है, यों खुलेआम कपड़े उतारना, तोबातोबा. ऐसे खुलेपन पर ही तो हिंदुस्तानी मर्द मरमर जाते हैं.’’

मैं जानता था, मिसेज सिद्दीकी की दोनों बेटियां घर में सलवारकुरता पहन, हिजाब कर के बाहर निकलती थीं, लेकिन कालेज के बाथरूम में टाइट टीशर्ट और टाइट जींस पहन लेतीं और बौयफ्रैंड के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ घंटों किसी रेस्तरा में बतियातीं या पार्क में उन के कंधे पर सिर रख कर बैठी रहतीं.

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