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सभी की नजरें मुझ पर टिकी हुई हैं, यह मैं अच्छी तरह से जान गई थी. मेरे पति मुझे अकेला छोड़ कर कहीं भी नहीं जा रहे थे. मुझे एहसास हुआ कि मेरे पति के मन में यह डर था कि कहीं मैं टूट कर रो न पड़ूं. उन का यह अटूट विश्वास था कि अगर वे मेरे साथ रहें तो मैं किसी भी परिस्थिति का सामना कर पाऊंगी. उन की यह सोच गलत भी नहीं थी. हमारी शादी के 15 सालों में जब भी मैं बहुत दुखी होती थी तब मैं अपने पति के सिवा और किसी को अपने पास आने नहीं देती. समस्या क्या है, उस के बारे में जानेंगे तो जरूर हंसेंगे. हमारे पड़ोस के फ्लैट में रहने वाले कल उस फ्लैट को खाली कर रहे हैं. अच्छा, तो क्या इसी बात के लिए एक 40 वर्ष की उम्र की औरत रोएगी, यही सोच रहे हैं न आप? एक और बात, उस फ्लैट में वे पिछले 2 सालों से ही रह रहे हैं. हमारे बीच कोई गहरी दोस्ती भी नहीं है. उस फ्लैट में रोशनी नाम की एक औरत उस के पति और उन की डेढ़ साल की बच्ची रहते हैं. जब वे इस फ्लैट में आए थे तब रोशनी मां बनने वाली थी.

‘‘आंटी, आंटी,’’ मनोहर ने मुझे आवाज दी. उस की उम्र लगभग 25 साल की होगी. वह एक कंपनी में साधारण नौकरी पर था और उस की तनख्वाह बहुत कम थी. रोशनी अपनी बच्ची का पालन करने के लिए जो काम करती थी उसे छोड़ दिया था. फ्लैट का किराया समय पर न देने के कारण मालिक ने उन्हें फ्लैट खाली करने के लिए कहा था और वे कल खाली करने वाले थे.

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