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समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’

समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों में मेलमिलाप कराने का बहुत प्रयत्न किया किंतु असफल रही. दोनों तरफ से काफी अपशब्द सुनाए गए. समीर ने मुझे अपनी कसम देते हुए कहा, ‘‘मीरा, भविष्य में तुम इस बारे में प्रयास नहीं करोगी.’’ इस तरह दोनों परिवारों में मेलमिलाप होने की उम्मीद समाप्त हो गई.

सोमू के पालनपोषण में हम दोनों पूरी तरह व्यस्त हो गए. सोमू बचपन से ही मधुर स्वभाव एवं कुशाग्र बुद्धि की थी. समीर गर्व से कहते, ‘‘मीरा, हमारी सोमू जरूर कुशल इंजीनियर बनेगी, बड़ी तेज बुद्धि की है.’’

मैं कहती, ‘‘क्यों नहीं, जरूर बनेगी. उसे थोड़ा बड़ा होने दीजिए, तब समझ में आएगा कि उस की रुचि किस ओर है.’’

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