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उस साल मैं ने भी उसी कालेज में नयानया ऐडिमिशन लिया था जिस में अखिल था. लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह मेरी ही सोसायटी में रहता है, क्योंकि पहले कभी मैं ने उसे देखा नहीं था. एक दिन औटो के इंतजार में मैं कालेज के बाहर खड़ी थी कि सामने से आ कर वह कहने लगा कि अगर मैं चाहूं तो वह मुझे मेरे घर तक छोड़ सकता है. जब मैं ने उसे घूरा, तो कहने लगा. ‘डरो मत, मैं तुम्हारी ही सोसायटी में रहता हूं. तुम वर्मा अंकल की बेटी हो न?’ फिर वह अपने बारे में बताने लगा कि वह उदयपुर में अपने चाचा के घर में रह कर पढ़ाई करता था. लेकिन अब वह यहां आ गया.

इस तरह एकदो बार मैं उस के साथ आईगई. लेकिन मैं ने कभी उस के बारे में ज्यादा जानना नहीं चाहा. वही अपने और अपने परिवार के बारे में कुछ न कुछ बताता रहता था. उस ने ही बताया था कि उस के चाचाचाची का कोई बच्चा नहीं है, इसलिए वह उन के साथ रहता था. लेकिन उस की चाची बड़ी खड़ूस औरत है, इसलिए अब वह हमेशा के लिए अपने मांपापा के पास आ गया. खैर, अब हम अच्छे दोस्त बन गए थे. एक बार मैं उस के घर भी गई थी नोट्स के लिए तब उस के परिवार से भी मिली थी. अखिल के अलावा उस के घर में उस के मांपापा और एक छोटी बहन थी जिस का नाम रीनल था.

एक ही कालेज में पढ़ने के कारण अकसर हम पढ़ाई को ले कर मिलने लगे. इसी मिलनेमिलाने में कब हम दोनों के बीच प्यार का अंकुर फूट पड़ा, हमें पता ही नहीं चला. अब हम रोज किसी न किसी बहाने मिलने लगे. और इस तरह से हमारा प्यार 3 वर्षों तक निर्बाध रूप से चलता रहा. लेकिन कहते हैं न, इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते कभी.

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