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खुशियों की तलाश
रमा को अपने गलती का एहसास हो गया था कि वह अपना घर खुद बर्बाद कि है.
भाग - 1
अभी भी बड़ी भाभी की जबान कैंची की तरह चल रही थी, ‘‘दोनों में से एक काम हो- या उस मरदुए की आवभगत की जाए या फिर कोर्ट में केस लड़ा जाए.
भाग - 2
मुन्ना अपने पापा की कार को देखते हुए खुश हो गया , इतना स्मार्ट लग रहा था वह अपने पापा के साथ.
भाग - 3
अवध सदा से ही अपने रखरखाव, पहनावे का विशेष ध्यान रखते थे. इधर कुछ ज्यादा ही सजग, सचेत रहने लगे हैं. हरदम खिलेखिले, प्रसन्न अपनेआप में मग्न. घर में पांव टिकते नहीं थे.
भाग - 4
घरवाले उन सामानों को हिकारत से देखते. यह नफरत का बीज उस का ही बोया हुआ है. रमा सबकुछ छोड़छाड़ भागी न होती, उस की गृहस्थी यों तहसनहस न होती.
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