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शर्मिला मौन रही

"क्या ऊँचा सुनने लगी हो?"

शर्मिला को अपनी माँ से पता चल चुका था,इस घर में सात पीढ़ियों से किसी औरत पर हाथ नहीं उठाया है,इसलिए उसने शेरनी की तरह व्यवहार किया,

"इतवार को मेरा मूड ख़राब मत करो. मेरे कान बिल्क़ुल ठीक हैं,अगर ग़ुस्सा आ गया तो मिट्टी का तेल डालकर आग लगा लूँगी"

"क्या कहा?"समीर चीख़ कर उछल पड़ा,जैसे सांप ने सामने से फूत्कार मारी हो

"जो तुमने सुना"शर्मिला ने स्वर धीमा नहीं किया

"यही कि अधिक परेशान करोगे तो मैं आत्महत्या कर लूँगी,तुम्हारे साथ दूसरे भी बँधे बँधे फिरोगे,सारी इंजनीरिंग धरी की धरी रह जाएगी"

"कितने घटिया संस्कार हैं तुम्हारे"

"तो छोड़ दो मुझे,तलाक़ दे दो"

समीर बुरी तरह डर गया.डरी तो शर्मिला भी थी मगर नारी हठ,पुरुष के अहम को पराजित करने के लिए मन प्राण से जुटा था. असल में कुतर्कपूर्ण असभ्य संवाद शैली के कारण शर्मिला का प्रायः अनुराग से झगड़ा हो जाता था.घर की बात घर से बाहर न निकले इसलिए समीर हमेशा घुटने टेक देता था.शर्मिला इसे अपनी जीत समझ कर अपनी माँ और बहनों की वाहवाही बटोरती.संक्षेप में उसने नंदन कानन को शमशान भूमि में बदल दिया था.

समस्या ने विकराल रूप तब धारण किया,जब नन्हा गौरव इस परिवार का सदस्य बना.समीर को पूरी उम्मीद थी कि शर्मिला के स्वभाव में अब बदलाव आएगा,अब वो इस परिवार से जुड़ेगी. लेकिन ,जुड़ना तो दूर उसने देवयानी जी और सुधाकर जी को उसे छूने तक नहीं दिया,और जता दिया कि वो अपने बच्चे की देखभाल भली भाँति कर सकती है.बढ़ावा देने के लिए बहनें तो थीं ही अब उसके इस अभियान में माँ भी शामिल हो गयीं.

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