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अचानक पूछ बैठी, ‘‘सर, सौरी राकेशजी, फिर आप दिल्ली कब आ रहे हैं?’’ मैं ने कहा, ‘‘जब तुम बुलाओगी.’’

सुष्मिता ने जो कुछ कहा वह एक अविस्मरणीय बात थी, ‘‘मैं ने आप को यहां बिठा रखा है राकेशजी.’’ ऐसा कह कर अपने धड़कते दिल के बीच में मेरे हाथों को पकड़ कर रख लिया. मैं रोमांच से भर उठा. गाड़ी के छूटने की सीटी बज चुकी थी. मैं ने सुष्मिता को उतर जाने का इशारा किया. सुष्मिता गाड़ी से उतर आई. मैं ने खिड़की के पास आ कर हाथ हिला कर उसे विदाई दी. सुष्मिता प्लेटफौर्म पर खड़ी हो कर आर्द्र नयनों से हाथ हिलाती रही जब तक गाड़ी नजरों से ओझल नहीं हो गई. उस के आर्द्र नयनों को मैं अपलक निहारता रहा. सुष्मिता सचमुच मृगनयनी थी. ? लगभग 3 वर्ष मानो पलक झपकते बीत गए. मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर होने के नाते मेरी व्यस्तता काफी बढ़ गई थी. इसी बीच, सुष्मिता ने कई बार मुझ से फोन पर बातें कीं. उस ने प्यारभरे अंदाज में एक बार मुझ से पूछा, ‘‘कैसे हैं सर, सौरी राकेशजी, आप ने काफी लंबे अरसे के बाद मुझे याद किया.’’ लंबे अरसे के इस विनोद पर मैं भावविभोर हो गया. मैं ने स्वरचित एक छोटी सी कविता सुना दी:

‘‘जिस दिन आई याद न तेरी गीत न बोले, अधर न डोले. जिस दिन आई याद न तेरी देह लगी मिट्टी की ढेरी.’’ सुष्मिता ने कहा, ‘‘बहुत अच्छी लगी आप की कविता. इसी तरह लिखते रहिए. जब मैं आप से मिलूंगी, आप मुझे अपनी सारी कविताओं और गीतों का संग्रह मुझे प्रेजैंट करेंगे,’’ उस ने बालपनभरे अंदाज में पूछा, ‘‘प्रौमिस?’’ मैं ने भी उसी अदांज में प्रत्युत्तर दिया, ‘‘प्रौमिस.’’ उत्तर भारत की प्रचंड गरमी, रिमझिम बरसातें, पूस की ठिठुरती सर्दियां आईं और चली गईं. अचानक एक दिन सुष्मिता का एसएमएस मिला. सुष्मिता को मैं ने ‘सुशी’ कहना शुरू कर दिया था. ‘‘सर, सौरी राकेश, आप को जान कर खुशी होगी कि भारतीय प्रशासनिक सेवा में मेरा चयन हो गया है. ठीक 2 दिनों बाद मैं ट्रेनिंग के लिए मसूरी जा रही हूं. आशा करती हूं आप मुझे सीऔफ करने दिल्ली अवश्य आएंगे. आप की प्यारी सुशी.’’

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