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बेटे की तेरहवीं
आकाश की ओर देख कर आंखें मूंद कर मन ही मन उन्होंने कहा, ‘यही तेरी तेरहवीं है बेटा. मैं ने दुकान बंद नहीं की.
भाग - 1
विभा दिनभर दुकान पर रहतीं और अस्वस्थ कुमार साहब की सेवाटहल भी करतीं, लेकिन अचानक क्या हुआ कि उनके रंगीन सपनों का महल खड़ा होने से पहले ही जमींदोज हो गया?
भाग - 2
तपन अब कभी नहीं आएगा, मैं अस्पताल की सारी कार्यवाही पूरी कर के आता हूं. पुलिस वालों को भी जवाब देना है.
भाग - 3
विभा की नजर आकाश की तरफ उठ गई. ‘कहां हो बेटा, तुम तो विदेश जाने वाले थे, यह कहां चले गए. विदेश रहते तो कभीकभार बात भी कर लेती.
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