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विक्की हंसता हुआ ताईजी से लिपट गया और उन की पप्पी लेता हुआ बोला, ‘‘मुझे अपने साथ ले चलिए, प्लीज ताईजी.’’ विभा उस की मानसिकता देख कर सोच में पड़ गई थी, ‘यह बच्चा अपने मातापिता से दूर क्यों जाना चाहता है? और अपने साथ ले जाना ही क्या इस समस्या का सही निदान है?’

दिन के 12 बजे का समय था. विक्की रिचा के पास जा कर चिल्लाया, ‘‘बड़ी जोर की भूख लगी है. खाना कब दोगी?’’

‘‘क्या खाएगा? मुझे खा ले तू तो, सारा दिन बस ‘भूखभूख’ चिल्लाता रहता है. अभी सुबह तो पेट भर कर नाश्ता किया है, कुछ देर पहले ही फ्रिज में से मिठाई के 3 टुकड़े निकाल कर खा चुका है. मैं सब देख रही थी बच्चू, अब फिर भूखभूख. मुझे भी तो नहानाधोना होता है. चल जा कर पढ़ कुछ देर,’’ रिचा विक्की पर झल्ला पड़ी.

‘‘हमेशा डांटती रहती हो, अब भूख लगी है तो क्या करूं? पैसे दे दो, बाजार से समोसे खा कर आऊंगा.’’

‘‘यह कह न, कि समोसे खाने का मन है,’’ रिचा चिल्लाई, ‘‘देखिए न दीदी, कितना चटोरा हो गया है. पिछली बार जब मां के पास गई थी तो वहां पर छोटी बहन अपने घर से समोसे बना कर लाती थी. यह अकेला ही खाली कर देता था. देखो न, कितना मोटा होता जा रहा है, खाखा कर सांड हो रहा है.’’

‘‘रिचा, अपनी जबान पर लगाम दो. बच्चे के लिए कैसेकैसे शब्द मुंह से निकालती हो. यह यही सब सीखेगा. जो सुनेगा, वही बोलेगा. जो देखेगा, वही करेगा. पढ़ाई की जो बात तुम ने इस से कही है, वह सजा के रूप में कही है. इसे स्वयं ले कर बैठो, रोचक ढंग से पढ़ाई करवाओ. कैसे नहीं पढ़ेगा? दिमाग तो इस का अच्छा है,’’ विभा दबे स्वर में बोली ताकि विक्की उस की बात सुन न सके. पर इतनी देर में विक्की अपने लिए मिक्सी में मीठी लस्सी बना चुका था. वह खुशी से बोला, ‘‘ताईजी, लस्सी पिएंगी?’’ वह गिलास हाथ में लिए खड़ा था.

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