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‘‘नहीं मैम, आप सब को बोर्ड से तय सैलरी ही मिलेगी.’’ विपिन सर के चेहरे की मुसकान बता रही थी कि वे अपने कथन को ले कर गंभीर नहीं हैं यानी कोरी बकवास. फिर भी दिल बहलाने में क्या जाता है. मुआयने के 3 रोज पहले सभी अध्यापकों से कहा गया कि वे अपनेअपने मूल अंक प्रमाणपत्र औफिस में जमा करवा दें. मुआयने के बाद उसे लौटा दिया जाएगा. एक सैलरीशीट बनी. जिस पर क्लर्क को साढ़े 9 हजार रुपए तो अध्यापक को उस की योग्यता के अनुसार 15 से ले कर 20 हजार रुपए तक की सैलरी दर्शाई गई. सभी को यह फर्जी नियुक्तिपत्र दिया गया. स्कूल वालों ने दस्तखत करवा के एक अपने पास रखा, दूसरा अध्यापकों को दिया.

प्रधानाचार्य रामविलास चौबे ने स्वयं एक गोपनीय दौरा सभी कक्षाओं में कर के अध्यापकों से पूछा कि क्या उन के पास कोई और प्रोफैशनल डिगरी है? संयोग से एक अध्यापिका के पास बीएड के अलावा बीलिब की भी डिगरी थी. प्रधानाचार्य ने तत्काल उसे फर्जी लाइबे्ररी का इंचार्ज बना दिया. जबकि वह अध्यापिका का काम कर रही थी. ऐसे ही एक अध्यापक मुकुलचंद्र, जो 20 साल से अध्यापन का काम कर रहे थे, को एक दिन का प्रधानाचार्य बना दिया गया क्योंकि उन के पास बीएड की डिगरी थी. वर्तमान प्रधानाचार्य, जो मालिक की चापलूसी कर के प्रधानाचार्य बने थे, के पास सिर्फ मास्टर डिगरी थी. चूंकि बोर्ड को कागजी खानापूर्ति मुकम्मल चाहिए थी, सो मुकुलचंद्र प्रधानाचार्य बना दिए गए. एक दिन के लिए ही सही, वे फूले नहीं समा रहे थे. वे रामविलास से खुन्नस खाए हुए बैठे थे. इसी बहाने वे उसे नीचा दिखा तो सकेंगे.

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