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पुलिस के 2 सिपाही आपस में बातचीत करते जा रहे थे. एक ने कहा, ‘‘कहां गया होगा? अगर नहीं मिला तो थाने जा कर क्या मुंह दिखाएंगे. थानेदार साहब बहुत नाराज होंगे.’’

दूसरा बोला, ‘‘हुलिया क्या बताया था साहब ने?’’

‘‘काली आंखें, भूरे बाल, नाक चपटी, दाएं पांव पर एक सफेद निशान वगैरहवगैरह.’’

‘‘भई, उसे खोजतेखोजते मैं तो थक कर चूर हो गया हूं. पता नहीं उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया?’’

‘‘बच्चा है, ज्यादा दूर नहीं जा सकता. हिम्मत मत हारो, चलो, उस तरफ देखते हैं,’’ बतियाते हुए वे आगे निकल गए.

बाजार कभी का बंद हो चुका था. सड़कें सुनसान थीं. रात गहराने लगी थी. ठंडी, तेज हवा चल रही थी. नन्हे और पप्पी की टांगें दिनभर भटकतेभटकते थक चुकी थीं. रात के अंधेरे में सुनसान सड़क पर चलतेचलते वे दोनों एक बंद दुकान के आगे पड़ी एक बड़ी मेज के नीचे जा कर बैठ गए.

इधरउधर आंखें घुमाते हुए दोनों सिपाही आगे निकल गए. वे उन दोनों को नहीं देख सके क्योंकि जहां वे बैठे थे वहां अंधेरा था.

आंखों में निद्रा घिर आई थी. वे दोनों वहीं पर सोने का प्रयत्न करने लगे. ठंड के कारण वे थरथर कांप रहे थे.

अचानक नन्हे को पप्पी का स्वर सुनाई दिया. उस ने इधरउधर देखा. पप्पी का मुंह एक नाली में फंसा हुआ था. नन्हे ने उसे खींच कर बाहर निकाला तो देखा कि उस के मुंह में एक कपड़ा है, जिसे वह नाली के रास्ते दुकान के भीतर से बाहर खींचने का प्रयत्न कर रहा था. अब दोनों ने उस कपड़े को बाहर खींचा तो देखा कि वह एक छोटी सी चादर है.

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